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298 : शाम्ब - चरित्र
उसके वैदर्भी नामक एक रूपवती पुत्री थी । रुक्मिणी ने सोचा कि उसका ब्याह प्रद्युम्न के साथ हो जाय तो बहुत अच्छा हो । यह सोचकर उसने भोजकटपुर में राजा रुक्मि को कहलाया कि - " आप अपनी पुत्री वैदर्भी का विवाह प्रद्युम्नकुमार के साथ कर दें, तो अत्युत्तम हो । इसके पहले मेरा और कृष्ण का योग हो चुका है, वह दैव योग से ही हुआ है । अब उसके सम्बन्ध में किसी तरह की शंका न करें। आप अपने हाथ से वैदर्भी और प्रद्युम्नकुमार का भी योग मिला दे। इससे हम लोगों का पुराना प्रेमसम्बन्ध फिर से नया हो जायगा।”
रुक्मिणी का यह सन्देश सुनकर रुक्मि को अपनी पुरानी शत्रुता याद आ गयी। इसलिए उसने दूत से कहा - " हे दूत ! मैं चाण्डालों के यहां अपनी पुत्री का विवाह कर सकता हूं परन्तु कृष्ण के वंश में उसका विवाह कदापि नहीं. कर सकता।"
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उसका यह उत्तर सुनकर दूत वापस लौट आया और उसने रुक्मिणी को " सब हाल कह सुनाया। भाई का यह अपमानजनक उत्तर सुनकर रुक्मिणी को इतना दुःख हुआ कि रात को उसे नींद भी न आयी। उसकी यह अवस्था देखकर प्रद्युम्न ने पूछा - " माता ! आज तुम इतनी उदास क्यों हो ?" रुक्मिणी ने इसके उत्तर में रुक्मि राजा का सब वृतान्त उसे कह सुनाया । सुनकर प्रद्युम्न ने कहा – “हे माता ! तुम चिन्ता न करो । रुक्मि पर मधुर वचनों का प्रभाव नहीं पड़ सकता। इसलिए तो पिताजी ने आपके विवाह के समय दूसरी युक्ति से काम लिया था । मैं भी प्रतिज्ञा करता हूँ कि अब वैदर्भी के साथ ही विवाह करूंगा। यदि जरूरत हुई तो मैं भी पिताजी की तरह इस मामले में किसी युक्ति से ही काम लूंगा । "
इसके बाद दूसरे ही दिन शाम्बकुमार को अपने साथ लेकर प्रद्युम्नकुमार भोजकटपुर में जा पहुंचे। वहां वे दोनों चाण्डाल का वेश धारणकर नगर में घूम घूमकर किन्नर की भांति मधुरस्वर से गायन करने लगे । उनका गायन इतना सुन्दर, इतना मधुर और इतना मोहक होता था कि उसे जो सुनता था वही . मुग्ध हो जाता था। धीरे धीरे इनकी बात राजा रुक्मि के कानों तक पहुंची। फलतः उसने भी उनको राज भवन में बुलाकर सपरिवार इनका गायन सुना ।