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श्री नेमिनाथ-चरित * 297 मालूम हुआ कि प्रद्युम्न ने ही सत्यभामा को छकाया है, क्योंकि सपत्नी का एक पुत्र दस सपत्नी के बराबर होता है खेर, भवितव्यता को कौन रोक सकता है ? सत्यभामा ने भीत भाव से सहवास किया है इसलिए नि:सन्देह वह भीरू पुत्र को जन्म देगी।"
- दूसरे दिन सुबह कृष्ण रुक्मिणी के भवन में गये तो वहां जाम्बवती को उस दिव्य हार से विभूषित देखा। उन्हें अपनी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखते देखकर जाम्बवती ने कहा-“स्वामिन् ! आज मेरी ओर आप इस तरह क्यों देख रहे हैं ? मैं तो आपकी वही पत्नी हूँ, जिसे आप अनेक बार देख चूके हैं।" .
कृष्ण ने कहा-“यह तो सब ठीक है, परन्तु यह हार तुमने कहां से पाया है?" . .
जाम्बवती ने हँसकर कहा-"आप ही ने तो मुझे दिया था। क्या आप अपने हाथों का किया हुआ काम भी भूल जाते हैं ?" ___ यह सुनकर कृष्ण हँस पड़े इस पर जाम्बवती ने उन्हें अपनी सिंह विषयक स्वप्न कह सुनाया। सुनकर कृष्ण ने कहा-“यह स्वप्न बहुत ही उत्तम है। हे देवि! प्रद्युम्न के समान तुम्हें भी एक पुत्र रत्न होगा।" इतना कह कृष्ण उस समय वहां से चले गये। . तदनन्तर जाम्बवती ने गर्भकाल पूर्ण होने पर शुभ मुहूर्त में सिंह के • समान अतुल बलशाली शाम्ब नामक पुत्र को जन्म दिया। इसी समय सारथी
के जयसेन और दारुक तथा मन्त्री के सुबुद्धि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। .. सत्यभामा भी भीतावस्था में गर्भवती हुई थी। इसलिए उसने भीरू नामक एक
पुत्र को जन्म दिया। कृष्ण की अन्यान्य पत्नियों ने भी इसी समय एक एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु इन सबों की अपेक्षा सारथी और मन्त्री के पुत्रों के साथ शाम्बकुमार की विशेष मित्रता थी। इसलिए वह उन्हीं के साथ खेलता कूदता हुआ बड़ा होने लगा। जब उसकी अवस्था पढ़ने लिखने योग्य हुई, तब उसने बहुत ही अल्प समय में अनेक विद्या और कलाओं में पारदर्शिता प्राप्त कर ली।
कुछ दिनों के बाद रुक्मिणी को अपने भाई राजा रुक्मि की याद आयी।