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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 295 कर सकता। निदान, उसका ब्याह भानुक के साथ कर दिया गया। प्रद्युम्न की इच्छा न होने पर भी कृष्ण ने उसी समय कई विद्याधर राजकुमारियों के साथ प्रद्युम्न का भी ब्याह कर दिया। नारदमुनि ने प्रद्युम्न का पता लगाने और उसे कालसंवर के यहां से लाने में बड़ा परिश्रम किया था, इसलिए कृष्ण और रुक्मिणी उनके परम आभारी थे। विवाहोत्सव पूर्ण होने पर उन्होंने यथाविधि उनका पूजन कर सम्मान पूर्वक उन्हें विदा किया। उधर प्रद्युम्न की सम्पत्ति और प्रशंसा से सत्यभामा को बड़ा ही सन्ताप हुआ और वह कोप गृह में जाकर एक कोने में लेट गयी। कृष्ण जब उसके भवन में गये, तब उनको यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा-"हे सुभगे ? तुम इस प्रकार दुःखी क्यों हो रही हो? क्या किसीने तुम्हारा अपमान किया है?" सत्यभामा ने सजल नेत्रों से कहा- “नहीं, किसीने मेरा अपमान नहीं किया है, परन्तु एक आन्तरिक पीड़ा के कारण मेरा हृदय विदीर्ण हुए जा रहा है। मैं आपसे सत्य कहती हूं, कि यदि मेरे प्रद्युम्न के समान पुत्र नहीं होगा, तो मैं अवश्य प्राण त्याग दूंगी।" - उसका यह आग्रह देखकर कृष्ण ने उसे सान्त्वना दी। इसके बाद उन्होंने हरिणेगमेषी देव को उद्देस कर अट्ठम तप करते हुए पौषध व्रत ग्रहण किया। इससे हरिणेगमेषी ने प्रकट होकर पूछा-“हे राजन्! कहिये, आपका क्या काम है? आपने मुझे क्यों याद किया है?" कृष्ण ने कहा-"भगवन् ! सत्यभामा को प्रद्युम्न के समान एक पुत्र चाहिए। आप उसकी यह इच्छा पूर्ण कीजिए।" हरिणेगमेषी ने कृष्ण के हाथ में एक पुष्पहार देकर कहा-“राजन् ! यह हार पहनाकर आप जिस रमणी से रमण करेंगे, उसीके मनवाञ्छित पुत्र होगा।" - इतना कह वह देव तो अन्तर्धान हो गया। इधर प्रद्युम्न को अपनी प्रज्ञप्ति विद्या के कारण यह सब हाल मालूम हुआ। इसलिए उसने अपनी माता को उस हार की बात बतलाकर कहा कि- “हे माता। यदि आप मेरे समान दूसरा पुत्र चाहती हो, तो किसी तरह वह हार अपने हाथ कीजिए।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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