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श्री नेमिनाथ-चरित * 293 कि, न जाने कौन दुर्मति अपना प्राण देने आया है। यह कहते हुए वे तुरन्त बलराम और कुछ सैनिकों को साथ लेकर प्रद्युम्न के पीछे दौड़ पड़े। प्रद्युम्न तो उनके आगमन की बाट ही जोह रहा था। उसने एक ही बार में समस्त सैनिकों के दांत खटे कर, कृष्ण को शस्त्र रहित बना दिया। इससे कृष्ण को बहुत ही आश्चर्य और दुःख हुआ। __इसी समय कृष्ण की दाहिनी भुजा फड़क उठी। कृष्ण ने यह हाल बलराम से कहा। इसी समय नारद ने उनके पास आकर कहा-“हे कृष्ण! अब युद्ध का विचार छोड़ दीजिए और रुक्मिणी सहित अपने इस पुत्र को अपने मन्दिर में ले जाइए। यही आपका वह खोया हुआ धन प्रद्युम्नकुमार
- ज्योंही नारदमुनि ने कृष्ण को प्रद्युम्न का यह परिचय दिया, त्योंही प्रद्युम्न भी रथ से उतरकर कृष्ण के चरणों पर गिर पड़ा। कृष्ण ने अत्यन्त प्रेम से उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया। पिता और पुत्र का यह मिलन भी दर्शनीय था। जिसने उस दृश्य को देखा, उसी के नेत्र धन्य हो गये। ___प्रद्युम्नकुमार को बार-बार आलिङ्गन करने के बाद कृष्ण, रक्मिणी 'और प्रद्युम्न के साथ एक रथ पर सवार हुए और बड़ी धूम धाम के साथ नगर
के प्रधान मार्गों से होकर उनको अपने मन्दिर में ले गये। नगर निवासियों ने उस समय उन पर पुष्पवर्षा कर, उनके जयजय कार से आकाश गुंजा दिया।
आज रुक्मिणी की आराधना सफल हो गयी-देवी का वचन सत्य हो गया उसकी सूनी गोद भर गयी।