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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 291 उपरोक्त वचन सुनकर वे उठ खड़े हुए और अपनी विद्या के बल से क्षण मात्र में उन सबों के शिर मूंडकर उन्हीं के केशों से वह टोकरी भर कर, उन्हें सत्यभामा के पास वापस भेज दिया। ___ दासियों की यह दुरवस्था देखकर सत्यभामा को बड़ा ही क्रोध आया। उसने दासियों से पूछा-“तुम्हारी ऐसी अवस्था किसने की?" दासियों ने झनक कर कहा—“आप यह प्रश्न ही क्यों करती हैं ? जैसा स्वामी होता है, वैसा ही उसका परिवार भी होता है !" ___सत्यभामा ने इससे भ्रमित होकर इस बार कई हजामों को रुक्मिणी के केश लाने का आदेश दिया। तदनुसार वे भी रुक्मिणी के पास पहुँचे-पर मायामुनि ने उनकी भी वही गति की जो दासियों की की थी। दासियों के तो उन्होंने केवल केशं ही मूड़े थे, परन्तु अबकी बार नाईयों के तो उन्होंने शिर का चमड़ा तक छील लिया! दासियों की तरह यह हजाम भी रोते कलपते सत्यभामा के पास पहुंचे। सत्यभामा इस बार और भी क्रुद्ध हुई। उसने कृष्ण के पास जाकर कहा"मैंने आपके सामने केश देने की बाजी लगायी थी। आज वह दिन आ पहुंचा है। यदि रुक्मिणी के पुत्र का विवाह होता, तो वह आज मुझे छोड़ न देती। अब आप उसे बुलाकर मुझे शीघ्र ही उसके केश दिलाइए!" - कृष्ण ने हँसकर कहा:- "प्यारी! मैं उसके केश क्या दिलाऊ? तुमने तो उसके बदले पहले ही से अपना शिर मुंडवा लिया है।" सत्यभामा ने कहा-“आज मुझे ऐसी दिल्लगीयाँ अच्छी नहीं लगती। 'आप शीघ्र ही मुझे रुक्मिणी के केश दिलाइए!" - कृष्ण ने कहा- "अच्छा, मैं बलराम को तुम्हारे साथ भेजता हूँ। उनके साथ जाकर तुम स्वयं रुक्मिणी के केश ले आओ।" कृष्ण के आदेशानुसार बलराम सत्यभामा के साथ रुक्मिणी के वासस्थान " में गयी। वहां प्रद्युम्न ने अपनी विद्या से कृष्ण का एक रूप उत्पन्न किया। बलराम उन्हें देखते ही लज्जित हो उठे और बिना कुछ कहे सुने ही चुप चाप पूर्व स्थान में लौट आये। वहां भी कृष्ण को देखकर वे कहने लगे–“आप यह क्या दिल्लगी कर रहे हैं? मुझे सत्यभामा के साथ रुक्मिणी के केश लेने
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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