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________________ 290 * पाण्डव-जन्म और द्रौपदी-स्वयंवर ___ यह सुनकर रक्मिणी उसे डरते-डरते लड्डू देने लगी और वह एक के बाद एक अपने मुंह में रखने लगा। उसको इस तरह अनायास लड्डू खाते देखकर रुक्मिणी को अत्यन्त आश्चर्य हुआ और उन्होंने हँसकर कहा-“धन्य है महाराज! आप तो बड़े ही बलवान मालूम होते हैं।" उधर सत्यभामा अब तक कुल देवी के सामने बैठी हुई मायाविप्र के आदेशानुसार मन्त्र का जप ही कर रही थी। उसका यह जप न जाने कब तक चला करता, परन्तु इतने ही में कुछ अनुचरों ने आकर पुकार मचायी कि"हे स्वामिनी! नगर में आज महा अनर्थ हो गया है। फल से लदे हुए वृक्षों को न जाने किसने फल रहित कर दिये हैं। घास की दुकानों को घास रहित और जलाशयों को भी जल रहित बना दिया है। इसके अतिरिक्त भानुक कों न . जाने किसने एक उत्पाती अश्व दे दिया, जिस पर बैठने से उनकी दुर्गति हो । गयी। पता लगाने पर उस घोड़े का ही न पता मिलता है, न उसके मालिक का ही। हम लोग इस सब घटनाओं से पूरी तरह परेशान हो रहे हैं। ___यह सब बातें सुनकर सत्यभामा का ध्यान भंग हुआ। उसने दासियों से पूछा-“वह ब्राह्मण कहां है?" उत्तर में दासियों ने डरते डरते उसके भोजन करने और नाराज होकर चले जाने का हाल उसे कह सुनाया। इससे सत्यभामा मन ही मन जलकर खाख हो गयी। उसे इस बात से बड़ा ही दुःख हुआ कि वह ब्राह्मण उसे रूपवती बनाने का प्रलोभन देकर उलटा उसे विरुप बनाकर चला गया। इसलिए वह अपने मन में कहने लगी कि-"अब तो मुझे रक्मिणी के सामने और भी नीचा देखना पड़ेगा।” उसे यह भली भांति ख्याल था कि आज रुक्मिणी का शिर मुंडाया, जायगा, परन्तु अब तक वह चुपचाप बैठी हुई थी। ब्राह्मण देवता की कृपा से जब वह अपना शिर मुंडाकर विरूप बन गयी, तब वह कहने लगी, कि अब रुक्मिणी का शिर मुड़ाने में भी विलम्ब न करना चाहिए। यह सोचकर उसने उसी समय कई दासियों को एक टोकरी देकर आज्ञा दी कि इस टोकरी में रुक्मिणी के केश ले आओ। सत्यभामा के आदेशानुसार दासियां रुक्मिणी के पाय गयी और उनसे कहने लगी कि हमारी स्वामिनी ने आपके केश ले आने के लिए हमें आपकी सेवा में भेजा है। उस समय मायामुनि भी वहां बैठे हुए थे। दासियों का
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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