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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 289 रुक्मिणी ने कहा-“महाराज! मुझे एक पुत्र हुआ था पर उसका वियोग हो गया है। अब तक मैं उसके मिलन की आशा में कुल देवी की आराधना कर रही थी। आज मैंने कुल देवी के समक्ष अपने शिर का बलिदान चढ़ाना स्थिर किया और तदनुसार ज्योंहि मैंने अपनी गर्दन पर प्रहार किया, त्योंही देवी ने प्रसन्न होकर कहा-“हे पुत्री। इतनी शीघ्रता मत कर! जिस दिन तुम्हारे इस आम्रवृक्ष पर असमय में बौर आयेंगे, उसी दिन तुम्हारा पुत्र तुमसे आ मिलेगा। "मैं देखती हूं कि इस आम्रवृक्ष में तो बौर लग गये, परन्तु मेरा पुत्र न आया। इसीसे मेरा जी दु:खी है, हे महात्मन् ! लग्न और राशि आदि देखकर क्या आप मुझे यह बतला सकते हैं, कि मेरा पुत्र कब आयगा?" माया साधु ने कहा-"जो मनुष्य बिना कुछ भेंट दिये ज्योतिषी से प्रश्न करता है, उसे लाभ नहीं होता।" . रक्मिणी ने कहा—“अच्छा महाराज! बतलाइये, मैं आपको क्या दूं?" . ___माया साधु ने कहा- “तपश्चर्या के कारण मेरी पाचनशक्ति बहुत कमजोर हो गयी है, इसलिये मुझे मण्डु (मांड) बना दो!" . रक्मिणी ने श्रीकृष्ण के लिए कुछ लड्डू बना रक्खे थे। उन्होंको तोड़कर वह मण्डु बनाने की तैयारी करने लगी, परन्तु माया साधु ने अपनी विद्या के . प्रभाव से ऐसी युक्ति कर दी कि, किसी तरह आग ही न सुलग सकी। इससे रुक्मिणी बहुत चिन्तित हो उठी। यह देखकर मायासाधु ने कहा-“यदि मण्डु तैयार नहीं हो सकता, तो मुझे लड्डू ही दे दो। भूख के कारण मेरे प्राण निकले जा रहे हैं?" . ___ रुक्मिणी ने कहा- "मुझे यह लड्डू देने में कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु यह बहुत ही गरिष्ट हैं। कृष्ण के सिवा इन्हें शायद ही कोई दूसरा पचा सके ! मुझे भय है कि आपको यह लड्डू खिलाने से मुझे कहीं ब्रह्महत्या का पाप न • लग जाय।" ___मासा साधु ने कहा-“तपश्चर्या के कारण मुझे कभी अजीर्ण नहीं होता।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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