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श्री नेमिनाथ चरित : 287
सत्यभामा ने कहा—“हे भगवन् ! शरीर को कुरूप बनाने के लिए मुझे
क्या करना चाहिए ।"
मायाविप्र ने कहा- " पहले तुम अपना शिर मुंडा डालो, फिर समुचे शरीर में कालिख लगाकर फटे पुराने कपड़े पहन लो। इससे तुम कुरूप दिखायी देने लगोगी। ऐसा रूप धारण कर जब तुम मेरे सामने आओगी, तब मैं तुरन्त तुम्हें रूप लावण्य और सौभाग्य की आगार बना दूंगा।
सत्यभामा ने स्वार्थवश ऐसा ही किया। इसके बाद वह जब मायाविप्र के पास गयी, तब उसने कहा - ' -"मैं तो इस समय भूखों मर रहा हूँ। भूख के कारण मेरा चित्त ठिकाने नहीं है। पहले मुझे पेट भर खाने को दो, तब मैं दूसरा काम करूँगा।"
यह सुनकर सत्यभामा ने रसोई दारिनों को उसे भोजन कराने की आज्ञा दी। इस पर ब्राह्मण देवता भोजन करने चले, किन्तु चलते समय उन्होंने सत्यभामा के कान में कहा-' - " हे अनघे ! जब तक मैं भोजन करके न लौटू, तब तक तुम कुलदेबी के सामने बैठकर " रुडु बुडु रुडु बुड्ड स्वाहा” इस मन्त्र का जप करो।” सत्यभामा ने ब्राह्मण देवता की यह आज्ञा भी चुपचाप सुन और मन्त्र जप करना भी आरम्भ किया ।
उधर ब्राह्मणदेवता भोजन करने गये और अपनी विद्या के बल से वहां भोजन की जितनी सामग्री थी, वह सब चट कर गये । उनका यह हाल देखकर बेचारी रसोईदारिने घबड़ा गयी। वे डरने लगी, कि सत्यभामा यह हाल सुनेगी, तो न जाने क्या कहेंगी? अन्त में जब वहां जल के सिवा भोजन की कोई भी सामग्री शेष न बची, तब लाचार होकर उन्हें मायाविप्र से कहना पड़ा, कि भोजन सामग्री समाप्त हो गयी है, इसलिए महाराज अब दया करिए ! महाराज तो यह सुनकर चिढ़ उठे। उन्होंने कहा – “यदि भरपेट खिलाने की सामर्थ्य नहीं थी, तो व्यर्थ ही मुझे यहां पर क्यों बुलाया ? मेरा पेट अभी नहीं भरा। अब मुझे कहीं अन्यत्र जाकर अपनी उदरपूर्ति करनी पड़ेगी । "
इस प्रकार दिखाकर वह ब्राह्मण वेशधारी प्रद्युम्न वहां से चलते बने और इधर बेचारी सत्यभामा सौन्दर्य प्राप्त करने की आशा में अपने रूप को विरूप बना, उस मन्त्र का जप करती ही रह गयी ।