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284 * पाण्डव-जन्म और द्रौपदी-स्वयंवर आपत्ति न हो, तो कुछ देर इसी विमान में आप ठहरिये, मैं तब तक द्वारिका में जाकर अपना कुछ चमत्कार दिखला आऊँ!"
नारद ने इसमें कोई आपत्ति न की, इसलिए प्रद्युम्नकुमार विमान से उतर गए और पैदल ही नगर की शोभा देखते हुए आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि चारों और भानुक के विवाह की तैयारी हो रही है। यह देखकर वे सबसे पहले उस कन्या को हरण कर नारद के पास छोड़ आये, जिसके साथ भानुक का विवाह होने वाला था। वह बेचारी प्रद्युम्न और नारद को देखकर बहुत भयभीत हुई, किन्तु नारद ने उसे सान्त्वना देकर प्रद्युम्न का परिचय दिया, जिससे उसका भय दूर हो गया। ___इसके बाद प्रद्युम्न, बन्दर नचाने वाले का वेश धारण कर अपने बन्दरों . के साथ वनपालक के पास गये और उससे उन बन्दरों के लिए फल मांगने . लगे। इसपर वनपालक ने कहा- "इस उद्यान में फलों की कमी नहीं है, परन्तु यह सब फल भानुक के विवाह के लिए सुरक्षित रक्खे गये हैं, इसलिए । इनमें से एक भी फल मैं नहीं दे सकता।"
उसका यह उत्तर सुन, प्रद्युम्न ने उसे विपुल धन देकर अपने बन्दरों के साथ उद्यान में प्रवेश किया और देखते ही देखते समस्त वृक्षों को फल रहित बना दिया।
इसके बाद वे घोड़े के सौदागर का रूप बनाकर घास के बाजार में गये और वहां अपने घोड़ों के लिए अत्यधिक परिमाण में घास खरीदने की इच्छा प्रकट की। घास के व्यापारियों ने भी उसे भानुक के निमित्त सुरक्षित बतलाकर देने से इन्कार कर दिया। इसपर प्रद्युम्न ने उन्हें भी धन का प्रलोभन दे, सब घास ले ली और उसे अपनी विद्या के बल से इस प्रकार नष्ट कर दी कि कहीं उसका नाम निशान भी न बचने पाया।
इसके बाद उन्होंने जलाशयों की ओर ध्यान दिया और विद्या के बल से एक स्थान पर बैठे बैठे ही इस प्रकार जल सोख लिया कि कूप, बावड़ी और तालाब आदि जहां कहीं मीठा जल था, वहां कीचड़ के सिवा पानी का नाम तक न रह गया।
इसके बाद प्रद्युम्न, अपनी माया से एक उत्तम अश्व बनाकर, उसे मैदान