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श्री नेमिनाथ-चरित * 283 गया और सिर पकड़ कर बैठ गया। तदनन्तर उसने प्रद्युम्न से कहा-“मैं न जानता था कि मेरे उपकारों का बदला तुम इस तरह चुकाओगे! अज्ञात कुलशील वाले व्यक्तियों को इसलिए आश्रय देना बुरा माना गया है। वे सर्प की भांति अनेकबार अपने पालनेवालों का ही सर्वनाश करने पर तुल जाते हैं।" :
प्रद्युम्नकुमार ने अब तक कनकमाला की घृणित कहानी किसी पर प्रकट न की थी। परन्तु अपने को कलंक लगता देख, उन्होंने अब कालसंवर को सारा वृत्तान्त कह सुनाया। उसे सुनकर कालसंवर को अपने कार्य के लिए बड़ा पश्चात्ताप हुआ और उसने प्रद्युम्न को प्रेम पूर्वक गले लगा लिया।
इसी समय वहां नारदमुनि आ. पहुँचे। प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति विद्या से उन्हें पहचान कर उनका पूजन किया और उन्हें भी कनकमाला का वृत्तान्त कह सुनाया। उसे सुनने के बाद नारदमुनि ने भी श्री सीमन्धर स्वामी ने बतलाया हुआ प्रद्युम्न और रुक्मिणी का सब हाल प्रद्युम्न को कह सुनाया। साथ ही उन्होंने कहा-“तुम्हारी माता और सत्यभामा में यह बाजी लग चुकी है, कि
यदि पहले सत्यभामा के. पुत्र का पाणिग्रहण होगा तो उसमें रुक्मिणी अपने केश ' देगी और रुक्मिणी के पुत्र का पहले पाणिग्रहण होगा, तो सत्यभामा अपने केश देगी। इस समय सत्यभामा के भानुक पुत्र का विवाह हो रहा है। तुम्हारी माता को उसमें अवश्य अपने केश देने पड़ेगे। तुम्हारे जीवित रहते उसे इस प्रकार अपमानित होना पड़े यह ठीक नहीं। इससे वह अपना प्राण तक दे देगी। मैं समझता हूँ कि तुम्हें वहां चलकर शीघ्र ही इस दुर्घटना को रोकना चाहिए। कृष्णादिक भी तुम्हारे दर्शन के लिए लालायित हो रहे है।"
नारद की यह बातें सुनकर प्रद्युम्न के मन में भी माता पिता का प्रेम उमड़ आया। उन्होंने उसी समय प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा एक विमान बनाया और उसीमें बैठकर नारदमुनि के साथ कुछ ही देर में वे द्वारिकापुरी के निकट पहुँच गये। जब द्वारिकापुरी दिखायी दी, तब नारद ने हर्षपूर्वक कहा-“हे प्रद्युम्न कुमार! यही तुम्हारे पिता की द्वारिका नगरी है, जिसे स्वयं कुबेर ने बनाकर धनधान्य सम्पन्न किया है।"
प्रद्युम्नकुमार ने प्रसन्न होकर कहा- "हे मुनिराज! यदि आपको कोई