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282 पाण्डव-जन्म और द्रौपदी - स्वयंवर
शक्ति नष्ट हो गयी थी । उसने प्रद्युम्न को उसी समय अपनी दोनों विद्याएँ दे
| प्रद्युम्न के पुण्ययोग से वह उसे तुरन्त सिद्ध भी हो गयी । विद्याएँ सिद्ध हो जाने पर कनकमाला ने पुन: प्रद्युम्न के सामने वही बातें कहनी आरम्भ की।. इस पर प्रद्युम्न ने कुछ सोचकर कहा - " हे अनघे ! तुमने मुझे पाल पोसकर बड़ा किया है, इसलिए पहले तो तुम केवल मेरी माता ही थी, किन्तु अब तुमने मुझे यह विद्याएँ दी है, इसलिए तुम मेरी गुरुणी भी बन गयी हो। इसी कारण से मैं तुम्हारे इस पापकार्य में योगदान देने को तैयार नहीं हूँ ।"
प्रद्युम्न के इस उत्तर से कनकमाला के ऊपर मानो घड़ो पानी पड़ गया। प्रद्युम्न जानता था कि वह अब कोई अनर्थ किये बिना न रहेगी, इसलिए वह उसी समय नगर के बाहर निकल कर एक बावड़ी के किनारे जा बैठा और. खिन्नता पूर्वक इस घटना पर विचार करने लगा ।
उधर कनकमाला ने अपने ही नखों से अपना शरीर नोच खसोट कर क्षत विक्षत बना लिया, कपड़े फाड़ डाले और केश खोल दिये। इसके बाद उसने भयंकर कोलाहल मचाया। उसका वह कोलाहल सुनते ही उसके पुत्र दौड़ आये और माता से इस दुर्दशा का कारण पूछने लगे। इस पर कनकमाला ने रोष पूर्वक अश्रुधारा बहाते हुए कहा – “ दुरात्मा प्रद्युम्नकुमार आज मुझ पर बलात्कार करना चाहता था । उसी नीच ने मुझे नोच खसोटकर मेरी यह अवस्था कर डाली है।"
कनकमाला का यह वचन सुनते ही उसके समस्त पुत्र प्रद्युम्न को खोजते हुए, नगर के बाहर उस बावड़ी पर जा पहुँचे, जहाँ वह बैठा था । उसे देखते ही वे उस पर टूट पड़े और उस पर प्रहार करने की चेष्टा करने लगे। परन्तु प्रद्युम्न तो विद्याओं के बल से बलवान हो गया था, इसलिए अकेला होने पर भी वह भयभीत न हुआ। केसरी जिस प्रकार मृगों को मार डालता है, उसी प्रकार प्रद्युम्न ने कालसंवर के उन पुत्रों को क्षणमात्र में मार डाला ।
कालसंवर ने जब यह समाचार सुना, तब वह क्रोध के कारण आपे से बाहर हो गया और उसी समय प्रद्युम्न को मारने के लिए वहां जा पहुँचा। उसने भी वहां जाते ही प्रद्युम्न पर वार किया, परन्तु अपनी विद्याओं के बल से उसने उसे भी पराजित कर दिया। अपनी इस पराजय से कालसंवर बहुत उदास हो