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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 277 भिक्षुक पर उसकी दृष्टि जा पड़ी । मलीनता के कारण उसके शरीर पर सैकड़ों मक्खियां भिन भिना रही थी । सागरदत्त को उस पर दया आ गयी इसलिए उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर स्नान तथा भोजन कराकर उसके शरीर पर चन्दन का लेप किया। इससे भिक्षुक को बड़ा ही आनन्द हुआ और वह सुख से जीवन बिताने लगा। एकदिन सागरदत्त ने उससे कहा - " हे वत्स ! मैं अपनी सुकुमारिका नामक कन्या तुम्हें प्रदान करता हूं। तुम उसे पत्नी रूप में ग्रहण कर आनन्द पूर्वक उसके साथ रहो। तुम्हें अपने भोजन वस्त्र की चिन्ता न करनी होगी। तुम दोनों का सारा खर्च मैं ही चलाऊँगा । " सागरदत्त की यह बात सुनकर वह भिक्षुक आनन्द पूर्वक सुकुमारिका के साथ उसके कमरे में गया, किन्तु उसको स्पर्श करते ही, उसके शरीर में भी ऐसा दाह उत्पन्न हो गया, मानो वह आग में जल गया हो। इस यातना से व्याकुल हो, वह भी उस ऐश्वर्य को ठुकराकर वहां से भाग खड़ा हुआ। इस घटना से सुकुमारिका और भी दुःखित हो गयी । उसके पिता ने यह सब समाचार सुना तो उन्होंने कहा- ' -" हे वत्से ! यह तेरे पूर्व कर्मों का उदय है, और कुछ नहीं। तुम अब धैर्य धारण कर दानादिक सत्कर्म में अपना समय बिताया करो !” अपना पिता के इस आदेशानुसार सुकुमारिका धर्म ध्यान में तत्पर हो, समय व्यतीत करने लगी। एक दिन उसके यहां गोपालिका आदि साध्वियों का 'आगमन हुआ। सुकुमारिका ने शुद्ध अन्नपानादिक द्वारा उनका सत्कार कर उनका धर्मोपदेश सुना और ज्ञान उत्पन्न होने पर उन्हीं के निकट दीक्षा ले ली। इसके बाद वह छठ और अट्ठम आदि तप करती हुई गोपालिका प्रभृति साध्वीओं के साथ विचरण करने लगी । एक बार सुभूमि भाग उद्यान में रविमण्डल को देखकर उसने साध्वियों से कहा – “मेरी इच्छा होती है कि मैं यहां आतापना लूं।” साध्वियों ने इसका विरोध करते हुए कहा - " वत्से ! आगम में कहा गया है, कि साध्वियों को बस्ती के बाहर आतापना लेनी उचित नहीं है ।" परन्तु सुकुमारिका इन बातों को सुनी अनसुनी कर सुभूमिभाग उद्यान में चली गयी और सूर्य की ओर दृष्टि कर आतापना करने लगी ।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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