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श्री नेमिनाथ-चरित * 275 नरक में दीर्घकाल तक घोर यातना सहन करने के बाद उसने म्लेच्छों के यहां जन्म ग्रहण किया और मृत्यु होने पर वहां से सातवीं नरक में गयी। वहां ‘से निकलकर वह फिर मच्छ रूप में उत्पन्न हुई और वहां से फिर सातवीं नरक में गयी। वहां से निकलकर वह मत्स्य रूप में उत्पन्न हुई और नरक में गयी। इस प्रकार प्रत्येक नरक का उसे दो दो बार भोग करना पड़ा।
इसके बाद अनेक बार पृथ्वीकायादि में उत्पन्न होकर उसने अकाम निर्जरा के योग से अपने अनेक दुष्कर्मों का क्षय किया। उसके बाद वह इसी चम्पापुरी में सागरदत्त श्रेष्ठी की सुभद्रा नामक स्त्री के उदर से पुत्री रूप में उत्पन्न हुई, जहां उसका नाम सुकुमारिका पड़ा। वहीं जिनदत्त नामक एक महाधनवान सार्थवाह रहता था, जिसकी स्त्री का नाम भद्रा था। भद्रा ने सागर नामक एक पुत्र को जन्म दिया था, जो रूप और गुण में अपना सानी न रखता
था। ___एक दिन जिनदत्त श्रेष्ठी सागरदत्त के मकान के पास होकर अपने घर जा रहा था। अचानक उसकी दृष्टि सुकुमारिका पर जा पड़ी, जो मकान के ऊपरी हिस्से में गेंद खेल रही थी। वह रूपवती तो थी ही, यौवन ने उसकी शारीरिक शोभा मानो सौ गुनी बढ़ा दी थी। जिनदत्त उसे देखकर अपने मन में कहने लगा कि यह कन्या मेरे पुत्र के योग्य है वह इसी विषय पर विचार करता हुआ अपने घर जा पहुँचा। तदनन्तर वह अपने भाई को साथ लेकर सागरदत्त के पास गया और उससे अपने पुत्र के लिए सुकुमारिका की याचना की। इस पर सागरदत्त ने कहा-“यह पुत्री मुझे प्राण से भी अधिक प्यारी है, इसलिए इसके बिना मेरे लिये जीवन धारण करना भी कठिन हो जायगा। यदि आपका पुत्र सागर मेरा घर जमाई होकर रहना स्वीकार करे तो मैं उसके साथ सुकुमारी का ब्याह कर दूंगा और उसे बहुतसा धन आदि भी दूंगा।" ___ यह सुनकर जिनदत्त ने कहा-“अच्छा, मैं इस विषय पर विचार करूंगा। यह कहकर वह अपने घर चला आया। घर आकर उसने अपने पुत्र सागर से इसका जिक्र किया, किन्तु उसने इसका कोई उत्तर न दिया। इसलिए जिनदत्त ने “मौन सम्मति लक्षणम्" मानकर सागरदत्त की मांग स्वीकार कर ली। उसने सागरदत्त को कहला भेजा कि यदि आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से कर देंगे, तो मैं उसे आपके यहां घरजमाई होकर रहने की आज्ञा दे दूंगा।