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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 273 उसका यह कार्य देखकर दर्शक लोक स्तम्भित हो गये और आपस में कानाफुसी करने लगे कि क्या द्रौपदी पांचों भाइयों को अपना पति बनायगी ? इसी समय एक चारण मुनि वहां आ पहुंचे। उन्हें देखकर कृष्णादि राजाओं ने उनसे पूछा - " हे मुनिराज ! क्या यह द्रौपदी पांचों भाईयों को अपना पति बना सकती है ?" मुनिराज ने कहा – “हां, अवश्य ऐसा होगा, क्योंकि कर्म की गति बड़ी विषम है और इस संसार में जो कुछ होता है, वह पूर्वोपार्जित कर्म के ही • कारण होता है। आप लोगों की शंका का निवारण करने के लिए मैं द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तान्त वर्णन करता हूँ, आप लोग ध्यान से सुनें । " इस भरतक्षेत्र में चम्पापुरी नामक एक नगरी है। उसमें एक समय सोमदेव, सोमभूति और सोमदत्त नामक तीन ब्राह्मण बन्धु रहते थे। उनकी स्त्रीयों के नाम क्रमशः नागश्री, भूतश्री और यक्षश्री थे । उनमें परस्पर बड़ा प्रेम था और वे धनधान्य से सम्पन्न तथा सब बातों से सुखी थे । उन लोगों ने एक बार सलाह की कि आपस में प्रेम बढ़ाने के लिए सब लोग पारी पारी से एक दूसरे के यहां भोजन किया करें। इस व्यवस्थानुसार एक दूसरे के यहां वे भोजन किया करते थे। एक दिन सोमदेव के यहां भोजन करने की पारी थी । इसलिए नागश्री ने बड़े प्रेम के साथ सबको भोजन कराने के लिये नाना प्रकार की चीजें तैयार की। इसमें लौकी की तरकारी भी थी । नागश्री ने बड़ी विधि के साथ उसे बनाया था, परन्तु उसे यह न मालूम था, कि यह लौकी कड़वी है। तरकारी बनाने के बाद उसने उसे चक्खा, तो वह विष के समान मालूम हुई। इससे उसे बड़ा दुःख हुआ ओर उसने उसे छिपाकर अलग रख दिया। उसके सिवा अन्यान्य समस्त पदार्थ उसने अपने देवर तथा पति आदि को खिलाकर उन्हें सन्तुष्ट किया । उसी दिन दैवयोग से उस नगर के सुभूमि भाग नामक उद्यान में ज्ञानवान् धर्मघोष सूरि का आगमन हुआ। सोमदेवादि के चले जाने पर उनका धर्मरुचि नामक शिष्य सोमश्री के घर आया। उसे पारणे के लिए आहार की जरूरत थी। इसलिए नागश्री ने वह कड़वी तरकारी उसी को दे दी। उसे देखकर धर्मरुचि को परम सन्तोष हुआ और उसने समझा की भिक्षा में आज मुझे अपूर्व पदार्थ मिला है। उसने प्रसन्नता पूर्वक गुरुदेव के पास जाकर वह तरकारी
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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