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________________ 272 ** पाण्डव-जन्म और द्रौपदी-स्वयंवर पांचों भाई पाण्डव कहलाते थे। यह पांचों सिंह के समान शूरवीर, युद्ध में विद्याधरों को भी नीचा दिखाने वाले विद्या तथा बाहुबल में बहुत बढ़े चढ़े थे . वे अपने बड़े भाईयों का आदर करते हुए सदा न्याय और नीति के मार्ग पर ही चलते थे, जिससे प्रजा उन्हें प्राण से भी अधिक चाहती थी। ____ एक दिन काम्पिल्य नगर से राजा द्रुपद का एक दूत हस्तिनापुर आया और उसने राजा पाण्डु को प्रणाम कर कहा-“हे राजन् ! यह तो आप जानते ही होंगे कि राजा द्रुपद के धृष्टद्युम्न नामक एक पुत्र और द्रौपदी नामक एक कन्या है। इस समय उस कन्या के स्वयंवर का आयोजन किया गया है। उसमें भाग लेने के लिए दसदशाह, बलराम, कृष्ण, दमदन्त, शिशुपाल, रुक्मि, कर्ण, दुर्योधन तथा और भी अनेक बलवान राजा एवम् राजकुमार निमन्त्रिप्त . किये गये हैं। इनमें से अनेक तो पहले ही वहां पहुंच गये हैं और जो अभी नहीं । पहंचे हैं, उनके शीघ्र ही आ जाने की आशा है। हमारे महाराज ने आपसे अनुरोध किया है, कि आप भी अपने देवकुमार समान पांच पुत्रों को लेकर .. हमारी नगरी में अवश्य पधारें और स्वयंवर में भाग लेकर हमें कृतकृत्य करें।" ___ दूत के यह वचन सुनकर राजा पाण्डु परम प्रसन्न हुए। पंचबाणों द्वारा सुशोभित कामदेव की भांति वे अपने पांच पुत्रों को साथ लेकर तुरन्त काम्पिल्लपुर जा पहुंचे। उसी समय और भी राजा वहां पधारे थे। राजा द्रुपद ने उन सबों का सत्कार कर उन्हें यथायोग्य वासस्थान प्रदान किये। धीरे धीरे स्वयंवर का दिन भी आ पहुंचा। उस दिन समस्त राजा और राजकुमार वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो सभामण्डप में आकर बिराजे। यथासमय द्रौपदी ने भी दिव्यवस्त्रालङ्कार धारण कर, अरिहन्त भगवान की पूजा कर देवकन्या की भांति स्वयंवर मण्डप में पदार्पण किया। उसके साथ अनेक सखियाँ भी थी। प्रधान सखी ने उसे मण्डप में घुमा घुमा कर समस्त राजाओं का परिचय दिया, किन्तु द्रौपदी ने किसी को भी पसन्द न किया। अन्त में वह वहां पहुंची जहां पाश्च पाण्डव बैठे हुए थे, उन्हें देखकर वह प्रेमपूर्वक क्षण भर के लिए वहां रुक गयी और इसके बाद उसने उन पांचों के कण्ठ में एक साथ ही वरमाला पहना दी। 1. दूसरी कथा में अर्जुन के गले में वरमाला पहनाने का कथन है और पाँचों के गले गिरने का विधान है।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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