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श्री नेमिनाथ-चरित * 19
से निकलने पर वह एक चण्डाल की स्त्री होगी। वहाँ भी गर्भधारण करने पर सौत से उसका झगड़ा होगा, जिसमें सौत उसे छूरी मार देगी, जिससे उसकी मृत्यु होने पर वह तीसरी नरक में जायगी। इसके बाद उसे तिर्यञ्च गति प्राप्त होगी। इसी प्रकार वह जन्म-जन्मान्तर में अनन्तकाल तक दुःख भोग करेगी। आप के सम्यग्दृष्टि पुत्र को विष देने के कारण ही उसकी यह अवस्था होगी। उसने जो घोर पाप किया है, उसका यह फल होगा।" ___ केवली भगवान के यह वचन सुनकर सुग्रीव राजा के हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ। उन्होंने भगवान के निकट संयम लेने की इच्छा प्रकट की। उधर सुमित्र के हृदय में भी उथल-पुथल मच रही थी। उसने कहा-“मुझे धिक्कार है कि माता के इस दुष्कर्म में मुझे कारण रूप बनना पड़ा। हे गुरुदेव! कृपाकर मुझे भी इस भवसागर से पार कीजिए। मुझे भी यह संसार अब विषवत् प्रतीत होता है।" - पुत्र के यह वचन सुनकर राजा सुग्रीव ने कहा-“हे पुत्र! जो कुछ होना था वह तो हो चुका। अब उन बातों के लिए सोच करना व्यर्थ है। तुम्हारी अवस्था अभी संयम लेने योग्य नहीं है। मैं तुम्हारा पिता हूँ। मेरी आज्ञा मानना तुम्हारा कर्तव्य है। मैं अभी तुम्हें संसार-त्याग के लिए अनुमति नहीं दे
सकता। इस समय तो तुम्हें राज्य-भार ग्रहण कर प्रजापालन करना होगा। यही : 'इस समय मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ।" - सुमित्र को पिता की यह आज्ञा शिरोधार्य करनी पड़ी। राजा सुग्रीव ने उसे सिंहासन पर बिठाकर चारित्र ले लिया। अब वे केवली भगवान के साथ -विचरण करते हुए जप-तप और साधना में अपना समय बिताने लगे। सुमित्र ने • अपने सौतेले भाई पद्म को कई गाँव देकर उससे मेल रखने की चेष्टा की,
परन्तु इसका कोई फल न हुआ। वह असन्तुष्ट होकर कहीं चला गया। चित्रगति अब तक सुमित्र के पास ही था। वह उसे किसी प्रकार भी जाने नहीं देता था। अंत में बहुत कुछ कहने, सुनने पर सुमित्र ने उसे विदा किया। उसे बहुत दिनों के बाद वापस आया देखकर उसके माता-पिता को असीम आनन्द हुआ। चित्रगति देवपूजादिक पुण्यकार्य करते हुए अपने दिन बिताने लगा। उसकी इस जीवनचर्या से उसके माता-पिता और गुरुजन उससे बहुत प्रसन्न रहने लगे।