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________________ 270 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म एक श्रावक के सुपर्द किया। वहां एकान्तर उपवास और जिनपूजा करते हुए उसने बारह वर्ष सानन्द व्यतीत किये। अन्त में अनशन द्वारा शरीर त्याग कर, .. वह इन्द्र की पचपन पल्योपम आयुवाली प्रधान इन्द्राणी हुई। वहां से च्युत .. होकर वह कृष्ण की रुक्मिणी नामक पटरानी हुई है। पूर्वजन्म में मयूरी के बच्चे का विरह कराया था, इसलिए उसे भी सोलह वर्ष तक पुत्र का विरह सहन करना होगा।" सीमन्धर स्वामी के मुख से यह वृत्तान्त सुनकर नारदमुनि आकाश मार्ग ... द्वारा वैताढय पर्वत के मेघ तट नामक नगर में गये। वहां पर कालसंवर में उनका आदर सत्कार कर, उन्हें अपने यहां पुत्र जन्म होने का संवाद सुनाया।. .. साथ ही उसने प्रद्युम्नकुमार को भी मुनिराज के पास लाकर उनके चरणों पर . रक्खा। रुक्मिणी से मिलती जुलती उस बालक की मुखाकृति देखकर नारद को : विश्वास हो गया, कि यही कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्नकुमार है। इसके बाद कालसंवर से विदा ग्रहणकर वे द्वारिका लौट आये और कृष्ण को प्रद्युम्न के सम्बन्ध की सारी बातें कह सुनायी। तत्पश्चात् रुक्मिणी को भी लक्ष्मीवती से लेकर अब तक के समस्त जन्मों का वृत्तान्त कह सुनाया। रुक्मिणी को वह वृत्तान्त सुनकर सीमन्धर स्वामी के प्रति गाढ़ श्रद्धा उत्पन्न हुई और उसने वहां से हाथ जोड़कर भक्तिपूर्वक उन्हें प्रणाम किया। सोलह वर्ष के बाद वह अपने पुत्र को पुन: देख सकेगी। इस आर्हत् वचन से उसके व्यथित हृदय को बड़ी सान्त्वना मिली और वह अपने दिन शान्तिपूर्वक व्यतीत करने लगी।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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