________________
268 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म फिर एक दिन उस उद्यान में आयी और उस मयूर की रमणीयता देखकर उस पर मुग्ध हो गयी। वह मयूर की माता को रोती हुई छोड़, उस मयूर को अपने घर पकड़ ले गयी। वहां उसे एक सुन्दर पींजरे में बन्दकर वह उसे नाना प्रकार के पदार्थ खिलाने लगी। धीरे धीरे उसने उस मयूर को ऐसा बढ़िया नाच सिखाया, कि उसे जो देखता, वही उस पर मुग्ध हो जाता।
दूसरी और उसकी माता मयुरी किसी तरह भी उसे न भूल सकी। पुत्र स्नेह के कारण वह रात दिन करुण पुकार करती हुई उस मकान के चारों और चक्कर काटा करती। उसकी यह अवस्था देखकर आस पास के लोगों को उस पर दया आ गयी और वे लक्ष्मीवती से कहने लगे कि तुम्हारे लिये तो यह मयूर मनोरञ्जन की एक सामग्री बन गया है, परन्तु इसकी माता इसके वियोग से मरी जा रही है। यदि तुम इसे छोड़ देगी तो उसके प्राण बच जाएँगे, वर्ना वह इसी तरह किसी दिन मर जायगी।" _____ लोगों की इन बातों से उसे भी उस मयूरी पर दया आ गयी और उसने उसे सोलह मास के मयूर को बन्धन मुक्त कर दिया। इसी प्रमाद के कारण लक्ष्मीवती ने ऐसा कर्म सञ्चित किया, जिसके फलस्वरूप उसे सोलह वर्ष तक पुत्र वियोग सहने के लिए बाध्य होना पड़ा। ___इसके बाद एक दिन लक्ष्मीवती दर्पण में अपना रूप और श्रृंगार देख रही थी। इसी समय समाधिगुप्त नामक एक साधु उसके यहां भिक्षा लेने पधारे। लक्ष्मीवती का पति उन्हें भिक्षा देने के लिये उससे कह ही रहा था, कि इतने में किसी ने उसे पुकारा, जिससे वह बाहर चला गया। पीछे से लक्ष्मी ने उस साधु को देखा, किन्तु भिक्षा देने के बदले, दुर्वचन कहकर उसने उसे बाहर निकाल दिया और मकान का दरवाजा बन्द कर लिया।
इस निन्दित कर्म के कारण सातवें दिन उसके शरीर में गलित कुष्ट हो गया। उसकी वेदना से दुःखित हो वह अग्नि में जल मरी और उसी ग्राम में धोबी के यहां एक गधी के रूप में उत्पन्न हुई। वहां से मृत्यु होने पर वह एक शूकरी और शूकरी के बाद एक कुतिया हुई। एकदिन दवाग्नि में फंस जाने के कारण उसका शिर अध जला हो गया और उसकी वेदना के कारण अन्त में उसकी मृत्यु हो गयी।