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श्री नेमिनाथ-चरित * 267 की भी मृत्यु हो गयी ओर वह ज्योतिषी देवों में धूमकेतु नामक देव हुआ। ___धूमकेतु को अवधिज्ञान से यह बात मालूम हो गयी, कि पूर्वजन्म में मधु के साथ उसका विकट वैर था। इसलिए उसने मधु का पता लगाया, किन्तु वह महर्द्धिक होने के कारण, उसे उसका पता मालूम न हो सका। तदनन्तर धुमकेतु वहां से च्युत होकर, मनुष्यत्व प्राप्त कर तापस हुआ। वहां बाल तप करने के बाद उसकी मृत्यु हो गयी और वह वैमानिक देव हुआ। इस अवस्था में भी वह महर्द्धिक मधु को देखने में समर्थ न हो सका। कुछ दिनों के बाद वहां से च्युत होकर अनेक जन्मों के बाद वह कर्मवशात् फिर ज्योतिषी देवों में धूमकेतु नामक देव हुआ।
इसी समय मधु का जीव महाशुक्र देवलोक से च्युत होकर कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी के उदर से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। अब धूमकेतु को अपना बदला लेने का मौका मिला इसलिए वह उस बालक को जन्मते ही हरण कर ले गया। उस दुष्ट ने उसे मार डालने के लिए टंक शिला पर रख दिया था परन्तु पूर्व संचित पुण्य के कारण उसका बाल भी बांका न हुआ। वहां से उसे
कालसंवर उठा ले गया है। अब वह सोलह वर्ष के बाद रुक्मिणी को प्राप्त ' होगा।"
श्री सीमन्धर स्वामी के यह वचन सुनकर नारद ने पुन: पूछा-“हे भगवन् ! इस प्रकार रुक्मिणी का पुत्र वियोग किस कारण से हुआ है?" . . भगवान ने कहा-“इसी भरतक्षेत्र के मगधदेश में लक्ष्मीग्राम नामक
एक ग्राम है वहां पर एक समय सोमदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम लक्ष्मीवती था। वह एक बार किसी उद्यान में गयी। वहां पर मयूर के एक अण्डे को देखकर उसके हृदय में कुतूहल उत्पन्न हुआ और उसने कुंकुम से रंगे हुए हाथों से उसे स्पर्श कर लिया इस स्पर्श के कारण उसके वर्ण और
गन्ध में अन्तर आ गया और उसकी माता ने यह समझ कर कि यह मेरा अण्डा . नहीं है, सोलह घड़ी तक उसे स्पर्श भी न किया। इसके बाद अचानक वृष्टि होने पर जब वह धुलकर अपने मूल रूप में आ गया, तब उसकी माता ने उसे पहचान कर अपने पास रक्खा ।
यथा समय उस अण्डे से मयूर उत्पन्न हुआ। इसी समय वह लक्ष्मीवती