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264 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म धर्मोपदेश दिया। उसे सुनकर उस चाण्डाल को वैराग्य उत्पन्न हो गया और वह एक मास के अनशन द्वारा शरीर त्यागकर नन्दीश्वरद्वीप में एक देव हुआ। धर्मोपदेश सुनने के कारण उस कुतिया को भी ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह भी अनशन द्वारा शरीर त्यागकर उसी शंखपुर में सुदर्शना नामक राजकुमारी हुई।
कुछ दिनों के बाद फिर वहां महेन्द्र मुनि का आगमन हुआ। पूर्णभद्र और मणिभद्र के पूछने पर उस समय भी मुनिराज ने उनकी गति का सारा हाल उनको कह सुनाया। इसी समय राजकुमारी सुदर्शना ने मुनिराज का धर्मोपदेश सुन, उनके निकट दिक्षा ले ली, जिससे यथा समय उसे देवलोक की प्राप्ति हुई। उधर पूर्णभद्र मणिभद्र आजीवन श्रावक धर्म का पालन करते रहे। अन्त में मृत्यु होने पर वे दोनों सौधर्म देवलोक में सामानिक देव हुए। वहां से च्युत होने पर वे दोनों हस्तिनापुर में विष्वकसेन राजा के मधु और कैटभ नामक पुत्र .
यथासमय नन्दीश्वरद्वीप का वह देव भी च्यवन होकर अनेक जन्मों के बाद अन्त में पाटपुर का कनकप्रभ नामक राजा हुआ। उधर सुदर्शना स्वर्ग से च्युत होकर अनेक जन्मों के बाद राजा कनकप्रभ की चन्द्रोभा नामक पटरानी
उधर हस्तिनापुर में राजा विष्वकसेन ने मधु को अपना राज्य और कैटभ को युवराज पद देकर स्वयं दीक्षा ले ली, जिसके फलस्वरूप वह ब्रह्मदेवलोक का अधिकारी हुआ। ___ तदनन्तर मधु और कैटभ दोनों अपने राज्य का प्रबन्ध बड़ी उत्तमता से करने लगे, परन्तु भीम नामक एक पल्लीपति उनकी अधीनता स्वीकार नहीं करता था और वह उन्हें हमेशा तंग किया करता था। इसलिए मधु ने उसे दण्ड देने के लिए एक बड़ी सेना के साथ हस्तिनापुर से प्रस्थान किया। मार्ग में उसे वटपुर मिला। वहां राजा कनकप्रभ ने भोजनादिक द्वारा उसका बड़ा सत्कार किया, जिससे मधु को भी अत्यन्त आनन्द हुआ।
भोजनादि ने निवृत्त होने पर कनकप्रभ ने मधु को अपने महल में बुलाकर उसे एक सिंहासन पर बैठाया। इसके बाद अपनी स्वामी भक्ति दिखाने के लिये वह अपनी पत्नी के साथ तरह तरह की भेंट लेकर उसकी