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श्री नेमिनाथ-चरित * 263 एक दिन उस नगर में महेन्द्र मुनि का आगमन हुआ। उनका धर्मोपदेश सुनकर अर्हद्दास श्रेष्ठि ने उनके निकट दीक्षा ले ली। उसी समय पूर्णभद्र और मणिभद्र भी उनको वन्दन करने के लिए घर से निकले। रास्ते में उन्हें एक चण्डाल मिला, जो अपनी कुतिया को भी साथ लिये हुए था। उनको देखकर उन दोनों के हृदय में बड़ा ही प्रेम उत्पन्न हुआ, फलत: उन्होंने मुनिराज के पास आकर, उन्हें प्रणाम कर पूछा कि- "हे भगवन् ! वह चाण्डाल और उसकी वह कुतिया कौन थी? उन्हें देखकर हमारे हृदय में इतना प्रेम क्यों उत्पन्न हुआ?" .
मुनिराज ने कहा- “अग्निभूति और वायुभूति के जन्म में सोमदेव तुम्हारा पिता और अग्निला तुम्हारी माता थी। तुम्हारे पिता की मृत्यु होने पर वह इसी भरतक्षेत्र के शंखपुर का जितशत्रु नामक राजा हुआ, जो परस्त्री में अत्यन्त आसक्त रहता था। अग्निला की मृत्यु होने पर वह भी नगर में सोमभूमि ब्राह्मण की रुक्मिणी नामक स्त्री हुई। एक बार जितशत्रु की दृष्टि रुक्मिणी पर जा पड़ी। उसे देखते ही वह उस पर आसक्त हो गया। उसने
सोमभूति के शिर मिथ्या दोषारोपण कर रुक्मिणी को अपने अन्त:पुर में बन्द .: कर दिया। सोमभूति उसके 'वियोग से अत्यन्त व्याकुल हो गया और जीवितअवस्था में ही मृत मनुष्य की भांति किसी तरह अपने दिन बिताने लगा। राजा जितशत्रु ने हजार वर्ष तक रुक्मिणी के साथ आनन्द भोग किया। इसके बाद उसकी. मृत्यु हो गयी और वह नरक में तीन पल्योपम की आयुवाला नारकी हुआ। वहां से च्युत होने पर वह एक मृग हुआ किन्तु शिकारियों ने उसे मार डाला। वहां से वह एक श्रेष्ठी का पुत्र हुआ और वहां से मृत्यु होने पर वही फिर एक हाथी हुआ। दैवयोग से इस जन्म में उसे जांतिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे अनशन कर अठारहवें दिन उसने वह शरीर त्याग दिया। इसके बाद वह तीन पल्योपम की आयुष्यवाला वैमानिक देव हुआ। वहां से च्युत होने पर वही अब यह चाण्डाल हुआ है और वह रुक्मिणी अनेक जन्मों के बाद कुतिया हुई है इसी पूर्व सम्बन्ध के कारण उनको " देखकर तुम्हारे हृदय में प्रेम उत्पन्न हुआ है।"
मुनिराज के मुख से यह वृत्तान्त सुनकर पूर्णभद्र और मणिभद्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उन्होंने उस चाण्डाल तथा कुतिया को