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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 261 किस जन्म के बाद यह मनुष्यत्व प्राप्त हुआ है ? यदि तुम्हें अपने पूर्वजन्म का कुछ हाल मालूम हो, तो शीघ्र कहो।" - अग्निभूमि और वायुभूति दोनों इस ज्ञान से वञ्चित थे, इसलिए लज्जा के मारे उन्होंने अपने शिर झुका लिये। उनकी यह अवस्था देखकर सत्यमुनि ने उनके पूर्वजन्म का वृत्तान्त वर्णन करते हुए कहा—“हे ब्राह्मणों! पूर्वजन्म में तुम दोनों मांस लोलुप श्रृगाल थे और इसी ग्राम के वन में रहते थे। एक दिन किसी किसान ने अपने खेत में चमड़े की एक रस्सी रख दी। रात में वृष्टि होने पर वह पानी से भीगकर मुलायम हो गयी और उसे वह दोनों श्रृगाल खा गये। यह अत्याहार के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद तुम दोनों अपने कर्मानुसार इस जन्म में सोमदेव विप्र के पुत्र हुए हो। उधर उस किसान ने सुबह खेत में जाकर देखा, तो उसे मालूम हुआ, कि सारी रस्सी श्रृगाल खा गये हैं तब वह अपने घर चला गया, और कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु भी हो गयी। तदनन्तर वह अपनी पुत्र वधु के उदर से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ परन्तु जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न होने के कारण उसे यह हाल मालूम हो गया और वह इस चिन्ता में पड़ गया कि मैं अपनी पुत्रवधू को माता और अपने पुत्र को पिता किस प्रकार कहूं। इसी कारण से वह जन्म से ही कपट पूर्वक मूक बन गया है। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो उसे बुलाकर पूछ लो, वह स्वयं तुम्हें सब हाल कह सुनायगा।" . . सत्यमुनि की यह बातें सुनकर कुछ लोग तुरन्त उस किसान के यहां दौड़ गये और उसके मूक बालक को सत्यमुनि के पास ले आये। तदनन्तर मुनिराज ने उससे कहा-“हे वत्स! तुम अपने पूर्वजन्म का सारा वृतान्त इन लोगों को कह सुनाओं! इस संसार में न जाने कितनी बार पुत्र पिता और पिता पुत्र होता है। इसलिए ज्ञानी लोग इसे विचित्र कहते हैं। इसमें कोई लज्जा या संकोच करने की जरूरत नहीं है। तुम अपना मौन भंगकर सब लोगों को अपना पूरा वृतान्त कह सुनाओ! इससे तुम्हारा कल्याण ही होगा।" सत्यमुनि के मुख से अपना यह हाल सुनकर उस बालक को बड़ा ही आनन्द हुआ और उसने प्रसन्नता पूर्वक अपने पूर्वजन्म का वृत्तान्त सब लोगों को कह सुनाया। उसका जन्म वृत्तान्त और संसार की विचित्रता देखकर अनेक
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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