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________________ 260 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म नारद उनकी प्रार्थना स्वीकार कर तुरन्त श्री सीमन्धर स्वामी के पास गये। वहां पर उन्होंने उनसे पूछा-“हे भगवन् ! रुक्मिणी का पुत्र इस समय कहां है?" श्री सीमन्धर स्वामी ने कहा-“हे नारद! पूर्व जन्म के वैर के कारण धूमकेतू नामक देव छलपूर्वक उस बालक को हरण कर ले गया था। वह उसे वैताढय पर्वत की टंक शिला पर छोड़ आया था, परन्तु वहां उसकी मृत्यु नहीं. हुई, क्योंकि वह चरम शरीरी था और चरम शरीरी का प्राण इन्द्र भी नहीं ले सकते। इसके बाद कालसंवर नामक एक विद्याधर राजा ने उसे देखा और उसने उसे घर ले जाकर अपनी पत्नी को दे दिया। वह अब पुत्र की भांति उसका लालन पालन कर रही है। उसे वहां किसी प्रकार का कष्ट नहीं है।". यह सुनकर नारदमुनि ने पुन: पूछा- “हे भगवन् ! पूर्व जन्म में उसकें साथ धूमकेतु का वैर क्यों हो गया?" भगवान ने कहा- "इसी भरतक्षेत्र के मगध देश में शालिग्राम नामकं । एक ग्राम है। उसमें एक बहुत ही मनोरम उद्यान था, जिसका अधिष्ठायक सुमन नामक एक यक्ष था। उसी ग्राम में सोमदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम अग्निला था। उसके अग्निभूमि और वायुभूति नामक दो पुत्र थे, जो वेद के अच्छे ज्ञाता माने जाते थे। अपनी विद्या के कारण उन दोनों ने ऐसी कीर्ति उपार्जित की, कि उसके कारण वे बहुत ही अभिमानी हो गये। ___ कुछ दिनों के बाद एक बार उस मनोहर उद्यान में नन्दिवर्धन नामक एक आचार्य का आगमन हुआ। यह जानकर समस्त नगर निवासी उनकी सेवा में उपस्थित हुए और उनको वन्दन किया, किन्तु अग्निभूति और वायुभूति दोनों ने वहां जाकर अभिमान पूर्वक कहा-“हे जैनमत से वासित मतिवाले ! यदि तुम्हें कुछ शास्त्र का ज्ञान हो तो हमारे सामने आओ और अपनी विद्वता का परिचय दो, अन्यथा तुम्हारा यह धर्मोपदेश व्यर्थ है।" उनके ऐसे वचन सुनकर नन्दिवर्धन के सत्य नामक एक अवधिज्ञानी शिष्य ने उन दोनों से पूछा- “यहां तुम दोनों का आगमन कहां से हुआ है?" वे तुरन्त बोल उठे—“हम शालिग्राम से यहां आये हैं।" सत्यमुनि ने कहा- “मैं यह नहीं पूछता। मैं तो यह पूछता हूं कि तुम्हें
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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