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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 259 हो, फिर उसे क्यों मांगने आयी हो?" _____ रुक्मिणी ने कहा- “नहीं नाथ, मैं कब ले गयी हूँ? आज आप ऐसी बात क्यों कहते हैं?" रुक्मिणी का यह उत्तर सुनकर कृष्ण ने दांतों तले अंगुली दबा ली। वे कहने लगे—“मैं जो कहता हूँ वह ठीक ही कहता हूँ। परन्तु यदि तुम उसे मेरे हाथों से नहीं ले गयी हो, तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि कोई दूसरा ही तुम्हारा वेश धारण कर, उसे छल पूर्वक मेरे हाथों से छीनकर ले गया है। इतना कह कृष्ण ने उसी समय दूतों को चारों ओर दौड़ाकर उस बालक की खोज करायी, किन्तु कहीं भी उसका पता न चला। इससे रुक्मिणी विलाप करने लगी और विलाप करते-करते अन्त में वह मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़ी। इससे समस्त यादवों को दुःख हुआ। समस्त द्वारका नगरी में एक सत्यभामा ही ऐसी थी, जिसे इस घटना से जरा भी दुःख या आश्चर्य न हुआ। बल्कि मन ही मन इससे वह आनन्दित हुई, किन्तु अपना यह भाव उसने प्रकट न होने दिया। ___ प्रद्युम्न के खो जाने से.रक्मिणी की प्रसन्नता तो मानो सदा के लिए गायब हो गयी। साथ ही कृष्ण भी रात दिन उदास रहने लगे। इतने ही में एक दिन उनकी राजसभा में कहाँ से घूमते घामते नारदमुनि आ पहुंचे। कृष्ण को उदास देखकर नारद ने उनके उद्वेग का कारण पूछा। कृष्ण ने कहा- "भगवान् ! आपसे मैं क्या कहूं, रुक्मिणी के नवजात पुत्र को कोई छल पूर्वक मेरे हाथों से हरण कर ले गया है। उसी घटना से हम सब लोग दुःखित हो रहे हैं। यदि आपको आपका कुछ पता मालूम हो, तो बतलाने की दया करें।" ... नारदमुनि ने कहा-“हे केशव! यहां पर अतिमुक्तक मुनि महाज्ञानी थे, किन्तु वे तो मोक्ष के अधिकारी हो गये। इस समय भरतक्षेत्र में उनके समान दूसरा कोई ज्ञानी नहीं है। पर हां, श्री सीमन्धर स्वामी उसका पता बतला सकते हैं। यदि आप कहें तो मैं पूर्व महा विदेह में जाकर, उनसे पूछ आऊं!" ___श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य यादवों को यह सुनकर अत्यन्त आनन्द हुआ। उन्होंने नारदमुनि की पूजा कर, उनसे इतना काम कर देने की प्रार्थना की।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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