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श्री नेमिनाथ-चरित * 257 .. जिस समय कृष्ण और रुक्मिणी में यह बातचीत हुई, उस समय सत्यभामा की एक दासी भी वहां उपस्थित थी। उसने सत्यभामा के पास जाकर उससे यह सब बातें बतला दी।
इससे सत्यभामा के हृदय में खलबली मच गयी। उसने कृष्ण के पास आकर कहा—“आज मुझे ऐरावत समान एक हाथी स्वप्न में दिखायी दिया है।" उसकी बाह्य चेष्टा देखकर कृष्ण समझ गये, कि वास्तव में इसने कोई स्वप्न नहीं देखा है, बल्कि यह सब यों ही कह रही है। इस पर भी उन्होंने उसे प्रसन्न रखने के लिए कह दिया, कि तुम एक अच्छे पुत्र की माता होगी। यह सुनकर सत्यभामा परम प्रसन्न हुई। यद्यपि उसने कृष्ण से झूठी ही बात कही थी, फिर भी दैवयोग से वह भी इसी समय गर्भवती हो गयी।
परन्तु सत्यभामा का गर्भ साधारण होने के कारण वह ज्यों-ज्यों बड़ा होता गया, त्यों-त्यों उसका उदर भी बढ़ता चला गया। रुक्मिणी का गर्भ उत्तम था, इसलिये गर्भ बढ़ने पर भी उसका उदर जैसे का तैसा ही बना रहा। इस अन्तर को लक्ष्य कर सत्यभामा ने कृष्ण से कहा-“देव! मालूम होता है कि रुक्मिणी ने गर्भ की बात आपसे झूठ ही कही है। यदि उसके गर्भ होता, तो क्या मेरी ही तरह उसका भी उदर न बढ़ गया होता।" . जिस समय सत्यभामा कृष्ण से यह बात कह रही थी, उसी समय दौड़ती हुई एक दासी वहाँ आ पहुँची। उसने कृष्ण को बधाई देकर कहा. “राजन्! रुक्मिणी ने अभी-अभी एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया है। हे स्वामिन् ! उसकी कान्ति तपाये हुए स्वर्ण के समान है। मानो उसके जन्म से राजमन्दिर जगमगा उठा है।" - कृष्ण को यह संवाद सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई, परन्तु सत्यभामा का तो चेहरा ही उतर गया। वह झनक कर उसी समय वहां से उठकर अपने महल में चली गयी। वहां पहुंचते ही उसने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उसने भानुकर रक्खा। . उधर कृष्ण सत्यभामा के पास से उठकर, रुक्मिणी के पास गये। वहां पर उन्होंने एक सिंहासन पर स्थान ग्रहण किया। तदनन्तर उनके आदेश से रुक्मिणी की एक दासी उस नवजात बालक को उनके पास ले आयी। कृष्ण ने