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256 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म कि- "हे भगवन् ! मुझे पुत्र होगा या नहीं?" इस पर मुनिराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा-“हां, तुझे श्रीकृष्ण के समान एक सुन्दर और बलवान पुत्र होगा।"
यह सुनकर रुक्मिणी बहुत प्रसन्न हुई। उसने भोजनादि द्वारा मुनि का सत्कार कर, बड़े सम्मान के साथ उनको बिदा किया। उनके चले जाने पर सत्यभामा ने रुक्मिणी से कहा कि मुनिराज ने तो मेरी ओर देखकर कहा था, ' कि तुझे कृष्ण के समान पुत्र होगा, इसलिए पुत्र की माता बनने का सौभाग्य मुझे ही प्राप्त होगा। यह सुनकर रुक्मिणी ने कहा- “नहीं, मुनिराज ने तो मेरे प्रश्न के उत्तर में मुझसे ही यह बात कही थी। तुम छल कर रही हो, इसलिए तुम्हें कोई लाभ न होगा।" ____ अन्त में इस विवाद का निर्णय करने के लिए वे दोनों कृष्ण के पास गयी। उसी समय वहां सत्यभामा का भाई दुर्योधन आया हुआ था। उसे सत्यभामा ने कहा-“यदि मेरे पुत्र होगा, तो मैं उसे तुम्हारा दामाद बनाऊंगी।" इस पर रुक्मिणी ने कहा—“यदि मेरे पुत्र होगा, तो मैं भी यही करूंगी। दोनों की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा- “मुझे यह स्वीकार है। तुम दोनों में से यदि किसी के भी पुत्र होगा, तो मैं उससे अपनी कन्या का विवाह कर दूंगा।" ___सत्यभामा ने कहा-“यह तो होगा ही, किन्तु इतने ही से मुझे सन्तोष नहीं है। मैं यह भी चाहती हूं कि हम दो में से जिसके पुत्र का विवाह पहले हो, उसके विवाह में दूसरी अपने केश दे दे। कृष्ण, बलराम और दुर्योधन यह तीनों जन इसके साक्षी रहें।”
इस प्रकार वाद विवाद कर वे दोनों अपने अपने स्थान को वापस चली
गयी।
एक दिन प्रभात के समय रुक्मिणी ने एक स्वप्न देखा। उसे ऐसा मालूम हुआ, मानो वह धवल वृषभ पर स्थित एक विमान में बैठी हुई है। यह स्वप्न देखते ही उसकी निद्रा भंग हो गयी और उसी समय महाशुक्र विमान से च्युत होकर एक महर्द्धिकदेव रुक्मिणी के उदर में आया। सुबह उसने उस स्वप्न का हाल कृष्ण से कह सुनाया।इस पर कृष्ण ने कहा—“प्यारी! यह स्वप्न बहुत ही शुभ है। मालूम होता है कि तुम शीघ्र ही एक प्रतापी पुत्र को जन्म दोगी।"