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श्री नेमिनाथ-चरित * 255 मित्रता कर ली।
इसके बाद वितभय नगर के स्वामी मेरु राजा की गौरी नामक कन्या से कृष्ण ने विवाह किया। पश्चात् कृष्ण ने सुना कि अरिष्टपुर में राजा हिरण्यनाभ की पद्मावती नामक पुत्री का स्वयंवर होने वाला है। इसलिए बलराम और कृष्ण दोनों जन उस स्वयंवर में भाग लेने को पहुंचे। राजा हिरण्यनाभ रोहिणी के भाई थे और उस नाते कृष्ण तथा बलराम उनके भानजे लगते थे। इससे हिरण्यनाभ ने उन दोनों वीरों का बहुत ही स्वागत किया। हिरण्यनाभ के बड़े भाई रैवत ने अपने पिता के साथ नेमिनाथ तीर्थ में दीक्षा ले ली थी किन्तु दीक्षा लेने के पहले ही उन्होंने रेवती, रामा, सीता और बन्धुमती नामक अपनी चार पुत्रियों का विवाह बलराम के साथ कर दिया था। उस समय कृष्ण ने समस्त राजाओं के सामने ही पद्मावती का हरण कर लिया। कृष्ण के इस कार्य से स्वयंवर में आये हुए राजा रुष्ट हो गये, किन्तु कृष्ण ने उन सभी को युद्ध में पराजित कर अपना रास्ता साफ कर लिया। बलराम के साथ द्वारिका लौटने पर कृष्ण ने पद्मावती से विवाह कर लिया और गौरी के महल के निकट उसके रहने का प्रबन्ध कर दिया।
एक समय गन्धार देश की पुष्कलावती नगरी में राजा नग्नजीत राज्य . करते थे। उनके पुत्र का नाम चारुदत्त था। पिता की मृत्यु के बाद वही अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ, किन्तु शक्ति सम्पन्न न होने के कारण उसके भाई बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया। इससे वह भागकर कृष्ण की शरण में
आया और अपना राज्य वापस दिलाने के लिए उसने कृष्ण से प्रार्थना की। • कृष्ण उसकी प्रार्थना स्वीकार कर गान्धार गये। वहां उन्होंने शत्रुओं को मारकर
चारुदत्त का राज्य वापस दिलाया। इस उपकार के बदले चारुदत्त ने कृष्ण के साथ अपनी बहिन गान्धारी का विवाह कर दिया। तदनन्तर कृष्ण गांधारी के लिए द्वारिका लौट आये और उसे एक स्वतन्त्र महल में रखा। इस प्रकार कृष्ण ने आठ रानियों से विवाह किया और वे उनकी आठ पटरानियों के नाम से विख्यात हुई।
एक दिन रुक्मिणी के यहां अतिमुक्तक मुनि का आगमन हुआ उन्हें देखकर सत्यभामा भी वहां पहुंची। रुक्मिणी ने मुनि से वन्दना कर पूछा