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254 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म स्वभाव बहुत ही मिलनसार था, इसलिए उसने शीघ्र ही रुक्मिणी से मित्रता कर ली। इससे उसके दिन भी आनन्द में कटने लगे।
एक बार सिंहलद्वीप के राजा लक्ष्मरोमन ने कृष्ण की आज्ञा मानने से. इन्कार कर दिया, इसलिए कृष्ण ने उसे समझाने के लिए उसके पास एक दूत भेजा। कुछ दिनों के बाद उस दूत ने वहां से वापस आकर कृष्ण से कहा"हे स्वामिन् ! लक्ष्मरोमन आपकी आज्ञा मानने को तैयार नहीं है। परन्तु उसे नीचा दिखाने की एक और युक्ति मैंने खोज निकाली है। उसके लक्ष्मणा नामक एक कन्या है, जो बहुत ही सुन्दर है और सर्वथा आपकी रानी बनने योग्य है, वह इस समय दुमसेन नामक सेनापति की संरक्षका में सागर स्नान करने के लिए यहां आयी हुई है। वह सात दिन यहां रहेगी। यदि आप चाहें तो इस. बीच उसका हरण कर सकते हैं। सम्भव है कि इससे लक्ष्मरोमन भी आपकी अधीनता स्वीकार कर ले।"
दुत की यह सलाह कृष्ण को पसन्द आ गयी। वे उसी समय बलराम को साथ लेकर समुद्र तट पर गये और सेनापति को मारकर लक्ष्मणा का हरण कर लाये। तदनन्तर द्वारिका आकर उन्होंने उसके साथ ब्याह कर दिया और दास दासी आदि का प्रबन्ध कर रत्नगृह नामक महल में उसके रहने की व्यवस्था कर दी। फिर लक्ष्मरोमन ने भी अधीनता स्वीकार कर ली।
इसके बाद राष्ट्रवर्धन नामक राजा की पारी आयी। वह सुराष्ट्र देश के आयुस्खरी नामक नगर में राज्य करता था। उसकी रानी का नाम विजया था। उसके नमुचि नामक एक महाबलवान पुत्र और सुसीमा नामक परम रूपवती एक कुमारी भी थी। नमुचि ने दिव्य आयुध सिद्ध किये थे, उसे अपने बल का बड़ा अभिमान था, इसलिए वह कृष्ण की आज्ञा न मानता था। एक बार सुसीमा को साथ लेकर वह प्रभास तीर्थ में स्नान करने गया। इसी समय कृष्ण ने उस पर आक्रमण कर उसे मार डाला और सुसीमा का हरण कर लिया। तदनन्तर द्वारका आकर कृष्ण ने उससे विवाह कर उसे रत्नगृह के निकट एक सुन्दर महल में रहने को स्थान दिया। कृष्ण ने उसके लिए भी दास दासियों का समुचित प्रबन्ध कर दिया। सुसीमा के विवाह के समय राष्ट्रवर्धन राजा ने भी अनेक दास दासी और हाथी घोड़े आदि कृष्ण के पास भेजकर उनसे