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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 251 रुक्मिणी ने कहा- "हे नाथ! यह सब तो ठीक है, परन्तु आपकी अन्यान्य स्त्रियाँ तो बड़े ठाट बाठ के साथ यहां आयी है, उनके पिता तथा गुरुजनों ने बड़ी धूम के साथ, आपको विपुल सम्पत्ति देकर आपका ब्याह किया है, किन्तु मुझे तो आप अकेले ही एक बन्दिनी की भांति यहां ले आये हैं। हे प्रियतम! इससे आपकी वह स्त्रियां मेरा उपहास तो न करेंगी?" कृष्ण ने कहा- “नहीं प्रिये! तुम्हारा कोई उपहास न करेगा। अन्त:पुर में मैं तुमको औरों से अधिक ऊंचा स्थान प्रदान करूंगा, ताकि किसी को वैसा करने का साहस ही न होगा।" ___ इस प्रकार रुक्मिणी को सान्त्वना देते हुए कृष्ण अपने राजमन्दिर में आ पहुँचे। तदनन्तर उन्होंने सत्यभामा के महल के निकट श्रीप्रासाद नामक महल में रुक्मिणी के लिये रहने की व्यवस्था कर दी और उसके साथ गान्धर्व विवाह कर वह रात्रि क्रीड़ा कौतुक में व्यतीत की। ___कृष्ण ने रुक्मिणी के वासस्थान में जाने की सबको मनाई कर दी थी, इसलिए कोई भी उसे देख न पाता था। यह प्रतिबन्ध सत्यभामा के लिये असह्य हो पड़ा। वह रुक्मिणी.को देखने के लिए व्याकुल हो उठी, उसने देखने के लिए कृष्ण से अत्यन्त आग्रह किया। इस पर कृष्ण ने कहा-“अच्छा, कल तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण कर दूंगा।" . . सत्यभामा से यह वादा करने के बाद कृष्ण को एक दिल्लगी सूझी। 'श्रीप्रसाद में लक्ष्मी की एक सुन्दर प्रतिमा थी। उन्होंने सज्जित कराने के बहाने, चतुर कारीगरों द्वारा उस प्रतिमा को वहां से हटवा दिया और उस स्थान में उस प्रतिमा की ही भांति रुक्मिणी को बैठा दिया इसके बाद उन्होंने रुक्मिणी से कहा-"सत्यभामा के साथ अन्य रानियाँ जिस समय तुम्हें देखने आयें, उस समय तुम इस तरह स्थिर हो जाना, जिससे वे यह समझ सकें कि तुम लक्ष्मी की मूर्ति हो?" ___ इस प्रकार व्यवस्था करने के बाद कृष्ण ने सत्यभामा आदि से कह दिया कि-"तुम श्रीप्रसाद में जाकर रुक्मिणी को सहर्ष देख सकती हो।" कृष्ण का यह वचन सुनकर वे सब रुक्मिणी को देखने गयी। श्रीप्रसाद में प्रवेश करने पर पहले श्री मन्दिर पड़ता था। सत्यभामा ने सोचा कि चलो
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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