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________________ श्री नेमिनाथ - चरित : 17 अपने विमान से नीचे उतरे। उन्होंने कुमार के शरीर पर ज्योंही मन्त्रित जल के छींटे दिये, त्योंही वह इस प्रकार उठ बैठा, जिस प्रकार कोई मनुष्य गहरी निद्रा से उठ बैठता है। अपने आसपास राजा और मन्त्री आदि को एकत्रित देखकर सुमित्र ने अपने पिता से इसका कारण पूछा। राजा ने कहा- "हे पुत्र ! तुम्हारी विमाता ने तुम्हें विष दे दिया था । उससे तुम मूर्छित हो गये थे । हम लोगों ने अनेक प्रकार के उपचार किये, किन्तु कोई फल न हुआ। अन्त में, हम लोग तुम्हारे जीवन की आशा छोड़ बैठे थे। इतने में ही यह महापुरुष आ पहुँचे। इन्होंने अपने मन्त्र-बल से तुम्हारी मूर्च्छा दूर कर तुम्हें जीवन - दान दिया है। " पिता के यह वचन सुनकर सुमित्र ने हाथ जोड़कर चित्रगति से कहा - ' "हे महापुरुष! आपने अकारण मुझ पर जो उपकार किया है, वही आपके उत्तम कुल का परिचय देने के लिए पर्याप्त है, फिर भी यदि आप अपने नाम और कुल का पूरा परिचय देंगे, तो बड़ी कृपा होगी । " चित्रगति का मन्त्री पुत्र भी चित्रगति के साथ ही था । उसने चित्रगति के वंशादिक का वर्णन कर सब लोगों को उसका नामादिक बतलाया। चित्रगति का प्रकृत परिचय पाकर सुमित्र को बहुत ही आनन्द हुआ। उसने कहा- ' - "हे अकारण बन्धो ! मेरे विमाता ने आज मुझे विष देकर मेरा अपकार नहीं, बल्कि उपकार किया है। यदि वह विष न देती, तो मुझे आपके दर्शन कैसे होते ? आपने मुझे न केवल जीवनदान ही दिया है, बल्कि मुझ प्रत्याख्यान और नमस्कार हीन को दुर्गति में पड़ने से भी बचाया है । बतलाइए, मैं इस उपकार का बदला आपको किस प्रकार दे सकता हूँ ?" चित्रगति ने कहा - " मित्र ! मैंने जो कुछ किया है, वह बदले की इच्छा से नहीं, बल्कि अपना कर्त्तव्य समझकर ही किया है। आपके प्राण बच गये, यही मेरे लिये परम सन्तोष का विषय है । मुझे अब आज्ञा दीजिए, ताकि मैं अपने नगर को जा सकूँ ।" सुमित्र ने कहा - "हे बन्धो ! मैं अकारण आप का समय नष्ट नहीं करना चाहता। परन्तु सुयशा नामक एक केवली भगवान समीप के ही प्रदेश में विचरण कर रहे हैं और वे शीघ्र ही यहाँ आने वाले हैं। यदि उन्हें वन्दन करने
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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