________________
श्री नेमिनाथ - चरित
249 पड़े । तूफान की तरह उनको समीप आते देखकर रुक्मिणी घबड़ा उठी। उसने कृष्ण से कहा - " हे नाथ! मेरा भाई अत्यन्त क्रूर और महाबलवान है। शिशुपाल भी वैसा ही है। मालूम होता है कि वे दोनों विशाल सेना के साथ हमारे पीछे आ रहे हैं। आप तो केवल दो ही जन हैं, इसलिए मुझे चिन्ता हो रही है, कि हमारी न जाने क्या गति होगी । "
कृष्ण ने हँसकर कहा - " हे सुन्दरि ! तुम्हें चिन्ता करने का कोई कारण नहीं । तुम क्षत्रिय पुत्री हो । यदि हम लोगों पर कोई विपत्ति भी आ पड़े, तो तुम्हें धैर्य से काम लेना चाहिए। वैसे, मैं तुम्हें बतला देना चाहता हूं कि बेचारे यह रुक्मि आदि मेरे सामने किसी हिसाब में नहीं है। देखो, मैं तुम्हें अपने बल का एक छोटा सा नमूना दिखलाता हूँ।
इतना कह कृष्ण ने एक अर्धचन्द्र बाण उठाया और उस एक ही बाण से वृक्षों की एक श्रेणी को कमलनाल की भांति काट कर उसे धराशायी बना • दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी अंगूठी से एक छोटा सा हिरा निकाला और रुक्मिणी के सामने ही चुटकी से उसे इस तरह मसल दिया कि, यह पके हुए, चावल की भांति पिस कर चुर्ण विचूर्ण बन गया । कृष्ण का यह बल देख रुक्मिणी को अत्यन्त आनन्द हुआ और उसे विश्वास हो गया कि रुक्म और शिशुपाल आदि उनका बाल भी बांका नहीं कर सकते।
इसके बाद कृष्ण ने बलराम से कहा - " भाई ! आप रुक्मिणी को लेकर आगे चलिए मैं रुक्मि आद को पराजित कर शीघ्र ही आपसे आ मिलूंगा।”
बलराम ने कहा – “ नहीं भाई ! आप चलिए, उन सबों को परास्त करने के लिए मैं ही काफी हूँ !”
कृष्ण और बलराम की यह बातचीत सुनकर रुक्मिणी डर गयी । उसने कृष्ण से प्रार्थना कि—–“प्राणनाथ! चाहे सबको मार डालिए । परन्तु मेरे भाई को अवश्य बचाइए ! मैं नहीं चाहती कि मेरे पीछे उसका प्राण जाय और मेरे शिर पर कलंक का टीका लगे !”
रुक्मिणी क़ी यह प्रार्थना सुनकर कृष्ण ने इसके लिए बलराम को सूचना दे दी। इसके बाद बलराम वहीं खड़े होकर शत्रु सेना की प्रतीक्षा करने लगे