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248 * रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म जाऊंगी। यदि आप उससे ब्याह करना चाहते हों तो वहां उपस्थित रहें, वर्ना उसका ब्याह शिशुपाल के साथ हो जायगा।"
उधर रुक्मि ने, रुक्मिणी से ब्याह करने के लिए शिशुपाल को निमन्त्रण दिया और वह यथासमय अपनी सेना के साथ कुण्डिनपुर आ पहुंचा। कलह प्रेमी नारद ने शीघ्र ही यह समाचार कृष्ण को जाकर सुनाया। सुनते ही कृष्ण भी बलराम के साथ एक रथ में बैठकर शीघ्रता पूर्वक कुण्डिनपुर जा पहुंचे। वहां से अपने साथ सेना या नौकर चाकरों को भी न लाये थे, इसलिए किसी को उनके आगमन का समाचार मालूम न हो सका।
धीरे धीरे माघ शुक्ल अष्टमी का दिन आ पहुंचा। रुक्मिणी की धात्री . उस दिन अपने वचनानुसार नागपूजा के बहाने रुक्मिणी को उद्यान में ले गयी। वहां पहले से ही कृष्ण का रथ खड़ा था। कृष्ण रथ से उतर कर रुक्मिणी के पास गये। उसको अपना परिचय देते हुए कृष्ण ने कहा- “हे सुन्दरि! जिस प्रकार मालती की और भ्रमर खिंच आता है, उसी प्रकार तुम्हारे रूप और गुणों पर मुग्ध होकर मैं बहुत दूर से यहां खिंच आया हूँ। अब,विलम्ब करने का समय नहीं है। तुम मेरे रथ में बैठ जाओ। हम लोग शीघ्र ही सुरक्षित रूप में द्वारिका पहुंच जायेंगे।" ___धात्री को तो सब हाल पहले ही से मालूम था, इसलिए उसने रुक्मिणी को रथ पर बैठने का संकेत किया। रुक्मिणी का समूचा शरीर इस समय रोमाञ्चित हो उठा। उसे कुछ कुछ लज्जा और संकोच भी हो रहा था, फिर भी वह अपने हृदय को कड़ाकर उस रथ में बैठ गयी। कृष्ण ने उसी समय घोड़ों की लगाम ढीली कर दी और वे रथ को यहां से ले उड़े।
___जब कृष्ण का रथ कुछ दूर निकल गया, तब उस धात्री तथा अन्यान्य दासियों ने अपनी निर्दोषता प्रमाणित करने के लिए हल्ला मचाना आरम्भ किया। वे कहने लगी-“हे रुक्मिन् ! हे रक्मिन् ! देखो बलराम और कृष्ण चोर की भांति बलपूर्वक तुम्हारी बहिन को हरण किये जा रहे हैं। जल्दी दौड़ों और उसे बचाओ।" ___ दासियों की यह पुकार सुनकर चारों और हाहाकार मच गया। महापराक्रमी रक्मि और शिशुपाल शीघ्र ही अपनी अपनी सेना लेकर कृष्ण के पीछे दौड़