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श्री नेमिनाथ-चरित * 247 नारद ने कहा- “हे केशव! यह चित्र किसी देवी का नहीं, किन्तु कुण्डिनपुर की राजकुमारी रुक्मिणी का है। यह अभी अविवाहिता है।"
- इसके बाद नारद ने उसके रूप और गुणों का वर्णन कर, कृष्ण के हृदय में भी उसके प्रति अनुराग उत्पन्न कर दिया। यही उनका उद्देश्य था। इतना कर वे अपनी वीणा बजाते हुए अन्यत्र के लिए प्रस्थान कर गये।
नारद के चले जाने पर कृष्ण ने रुक्मिणी के पिता के पास एक दूत भेजकर, मधुर शब्दों में रुक्मिणी की याचना की। रुक्मि दूत की बातें सुनकर हँस पड़ा। उसने कहा-“हे दूत! कृष्ण गोपाल अपने हीन कुल का विचार किये बिना; मूढ़ता पूर्वक मेरी बहिन की याचना करता है! उसके साथ मैं अपनी बहिन का ब्याह कदापि न. करूंगा। मैंने तो उसका ब्याह राजा शिशुपाल के साथ करना स्थिर किया है। यह योग मणिकाञ्चन की भांति शोभाप्रद प्रमाणित होगा।" ..रुक्मि के यह वचन सुनकर कृष्ण का दूत द्वारिका लौट आया। उधर रुक्मिणी की धात्री ने यह हाल सुनकर स्नेहपूर्वक रुक्मिणी को अपने पास बुलाया और उससे कहा-“हे पुत्री! बाल्यावस्था में तुझे एकबार मेरी गोद ' में देखकर अतिमुक्तक मुनि ने कहा था कि यह कृष्ण की पटरानी होगी। मैंने पूछा- "हे भगवन् ! कृष्ण को हम लोग किस प्रकार पहचानेंगे?" उन्होंने कहा-"पश्चिम में समुद्रतट पर जो द्वारिका नगरी बसाये, उसीको कृष्ण समझना!" तब से मेरी यही धारणा थी कि तुम्हारा ब्याह कृष्ण से ही होगा, परन्तु आज मैंने खेद के साथ सुना है कि तुम्हारे भाई ने कृष्ण के दूत को कटु बचन कह कर लौटा दिया और तुम्हारा ब्याह उसने दमघोष के पुत्र शिशुपाल के साथ करना निश्चित किया है।"
यह सुनकर रुक्मिणी हँस पड़ी। उसने कहा—“माता! क्या मुनि का वचन कभी मिथ्या हो सकता है? क्या प्रात: काल का मेघगर्जन भी कभी निष्फल होता है ?"
__रुक्मिणी के यह वचन सुनकर धात्री उसका आन्तरिक भाव समझ गयी। उसने गुप्तरूप से कृष्ण के पास एक दूत भेजकर उनसे कहला दिया कि माघ शुक्ला अष्टमी को मैं नागपूजा के बहाने रुक्मिणी के साथ उद्यान की ओर