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तेरहवाँ परिच्छेद रुक्मिणी-हरण और प्रद्युम्न-जन्म
बलराम और कृष्ण अपने गुरुजनों की आज्ञा पालन करते हुए द्वारिकापुरी में आनन्दपूर्वक निवास करने लगे। बालक श्रीनेमिनाथ भगवान भी सब लोगों के साथ यहीं चले आये थे। उनका शरीर अब दिन प्रतिदिन उसी तरह बढ़ता जाता था, जिस तरह शुक्ल पक्ष में चन्द्र की कला बढ़ती है। बलराम और कृष्ण आदि भ्राता बड़े होने पर भी छोटे बनकर उद्यान और पर्वतों पर उनके साथ क्रीड़ा किया करते थे। क्रमश: जब उनका शरीर दस धनुष ऊँचा हुआ, • तब उन्होंने यौवनावस्था में पदार्पण किया, परन्तु जन्म से ही कन्दर्प विजयी होने के कारण उनके हृदय में विकार का भाव जरा भी न दिखायी देता था। उनके माता पिता और राम कृष्णादिक बन्धव उनसे नित्य ही ब्याह के लिए प्रार्थना किया करते थे, किन्तु वे किसी भी कन्या का पाणिग्रहण करना स्वीकार न करते थे। ..'. बलराम और कृष्ण अपना सारा समय क्रीड़ा कौतुक में ही व्यतीत करते
थे। उन्होंने आस पास के अनेक छोटे बड़े राजाओं को अपने अधिकार में कर, द्वारिका में एक साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इस साम्राज्य पर कृष्ण का एकाधिपत्य था और वे बलराम की सहायता से उसका शासनकार्य सुचारु रूप से संचालन करते थे। ____एक दिन नारद मुनि विचरण करते हुए कृष्ण के राजप्रसाद में जा पहुँचे। उन्हें देखकर कृष्ण और बलराम ने उनका बड़ा ही आदर सत्कार किया। तदन्तर वे वहां से प्रसन्न हो कृष्ण के अन्त:पुर में गये। वहां सत्यभामा दर्पण में