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244 * कंस-वध
मणिक्यमय सर्व प्रभासा नामक एक सभा गृह भी बनाया गया, जो बहुत ही मनोरम और दर्शनीय था।
___ इन चीजों के अतिरिक्त विश्वकर्मा ने एक सौ आठ हाथ ऊँचा जिन, प्रतिमा से विभूषित, और मेरु शिखर के समान ऊँचा एक जैन मन्दिर भी बनाया था। तालाब, कूए और उद्यान आदि तो स्थान-स्थान पर आवश्कतानुसार बना दिये गये। यह सब कुबेर ने केवल एक दिन और एक रात्रि अर्थात् 24 घण्टे में बना दिया। इस नगरी के पूर्व में गिरनार, दक्षिण में माल्यवान, पश्चिम में सौमनस.
और उत्तर में गन्धमादन नामक बड़े बड़े पर्वत अवस्थित थे। जिस समय यह मनोहर नगरी बनकर तैयार हुई, उस समय इन्द्रपुरी भी उसके सामने तुच्छ प्रतीत होने लगी। ___ प्रभात होने पर कुबेर ने कृष्ण को दो पीताम्बर, नक्षत्रमाला, मुकुट, कौस्तुभ नामक महारत्न, शारंग धनुष, अक्षय बाणवाले दो भाले, नन्दक नामक खड्ग, कौमोदकी नामक गदा और गरुड़ ध्वज नामक रथ दिया तथा बलराम को वनमाला नामक आभरण, हल, मूशल नामक दो आयुध दो वस्त्र, दो अक्षय भाले, एक धनुष और तालध्वज नामक रथ आदि वस्तुएं प्रदान की। इसके बाद अन्यान्य राजा जो कृष्ण और बलराम के पूज्य थे, उन्हें भी उस देव ने अनेक रत्न और आभूषण दिये।
तदनन्तर समस्त यादवों ने आनन्द पूर्वक पश्चिम समुद्र के तट पर कृष्ण का राज्याभिषेक कर नगर प्रवेश की तैयारी की। बलराम सिद्धार्थ सारथी के साथ और कृष्ण दारुक सारथी के साथ अपने अपने रथ पर आरूढ़ हुए। अन्यान्य राजाओं ने भी इच्छानुसार घोड़े, हाथी और स्थादिक पर स्थान ग्रहण किया। इसके बाद उन दोनों वीरों ने गगनभेदी जयध्वनि के साथ नगर प्रवेश किया। इस अवसर पर कुबेर ने साढ़े तीन दिन तक नगर में रत्न मणि, माणिक्य, काञ्चन, रजत, धन धान्य और उत्तमोत्तम वस्त्रों की वृष्टि की। इसके बाद पूर्वकथित विभिन्न महलों में कुबेर ने सबको वासस्थान दिया। इस प्रकार समस्त यादव आनन्द पूर्वक उस नगरी में बस गये और कुबेर उनकी मनोकामना पूर्ण करने लगे। थोड़े ही दिनों में यह द्वारिका नगरी सुख, शान्ति और सम्पदा की आगान बन गयी और यादवगण उसमें आनन्द पूर्वक निवास करने लगे।