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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 243 दिया तथा बलराम को सुघोष नामक शंख और दिव्य रत्न, माला और वस्त्रादिक दिये तदनन्तर उसने कृष्ण से कहा- "हे केशव! मैं सुस्थित नामक देव हूँ। आपने मुझे क्यों याद किया है? आपको जो काम हो, वह शीघ्र ही बतलाइए, मैं करने को तैयार हैं।" . इस पर कृष्ण ने कहा-"प्राचीनकाल में यहां वासुदेवों की द्वारिका नामक जो नगरी थी और जो जल में विलीन हो गयी थी, उसमें हमलोग बसना चाहते हैं, इसलिये आप उसे समुद्रगर्भ से बाहर निकाल दीजिए!" सुस्थित, देव तथास्तु कह, वहां से इन्द्र के पास गया और उनसे यह समाचार निवेदन किया। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने उसी समय वहां बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी रत्नमयी द्वारिका नगरी निर्माण कर दी। उसके चारों और एक बड़ा भारी किला बनाया। साथ ही एक खण्ड से लेकर सात खण्ड तक के बड़े महल भी बना दिये, और हजारों जिन चैत्य भी निर्माण किये। इन महलों में से एक महल का नाम स्वस्तिक था और वह नगर के अग्निकोण में अवस्थित था। वह सोने का बना हुआ था और उसके चारों और एक किला भी बनाया गया था। यह महल राजा समुद्रविजय के लिए निर्माण किया गया था। इसी महल में समीप अक्षोभ्य और स्तिमित के लिए नन्दावर्त तथा गिरिकूट नामक महल बनाये गये थे। नगर के नैऋत्य कोण में सागर के · लिए अष्टांश नामक महल बनाया गया था। हिमवान और अचल के लिए भी • दो अलग महल बनाये गये और उनका नाम वर्धमान रक्खा गया था। वायव्य कोण में धरणं के लिए पुष्पत्र, पूरण के लिए आलोक दर्शन और अभिचन्द्र के लिए विमुक्त नामक महल बनाये गये थे। ईशान कोण में वसुदेव का विशाल महल कुबेरच्छन्द नाम का बनवाया। इसी तरह नगर के मुख्य मार्ग पर राजा उग्रसेन के लिए भी स्त्री विहार क्षम नामक एक भारी महल बनाया गया था। यह सभी महल गढ़ द्वारा सुरक्षित और कल्पवृक्ष, गजशाला, अश्वशाला, सिंहद्वार · तथा ध्वजादिक से सुशोभित थे। इन सबों के मध्यभाग में बलदेव का पृथ्वीजय नामक बहुत बड़ा महल बनाया गया था। उससे कुछ दूरी पर अठारह खण्ड का सर्वतोभद्र नामक महल वासुदेव कृष्ण के लिये बनाया गया था। इस महल के सामने रत्न और मणि
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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