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242 * कंस-वध सहित वहीं पर वास किया। किन्तु दूसरे दिन सुबह उठकर उन्होंने देखा, तो न कहीं वह पर्वत था, न कहीं वह चिता। उस स्थान पर केवल राजकुमार की मुट्ठी भर हड्डियां पड़ी हुई थी। पता लगाने पर उन्हें यह भी मालूम हुआ कि यादव तो इस स्थान से बहुत दूर निकल गये हैं, और यह सब देव माया थी। यह जानकर यवन सहदेवादिक हताश हो गये और यादवों का पीछा छोड़कर, राजगृह को लौट आये।
कालकुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर जरासन्ध मूर्च्छित होकर गिर . पड़ा। कुछ देर में जब उसकी मूर्छा दूर हुई, तब वह बहुत ही करुण क्रन्दन करने लगा। किसी ने ठीक ही कहा है, कि संसार में नाना प्रकार के भयंकर . दुःख हैं, किन्तु पुत्र वियोग उन सब में बढ़कर है! .
उधर यादवों ने जब कालकुमार की मृत्यु का समाचार सुना, तब उनको कुछ धैर्य आया। उन्होंने आनन्दपूर्वक क्रोष्टुकि ज्योतिषी का पूजन किया। इसी समय वहां अतिमुक्तक मुनि का आगमन हुआ। उन्हें देखकर समुद्रविजय ने वन्दना करते हुए नम्रतापूर्वक पूछा-“हे स्वामिन् इस संकट के कारण हम लोग बड़ी चिन्ता में पड़ गये हैं। इससे हम लोग किस प्रकार उद्धार पायेंगे।" ___ मुनिराज ने कहा- "हे राजन् ! भय करने का कोई कारण नहीं है। यह तुम्हारा अरिष्टनेमि बाईसवां तीर्थकर और अद्वितीय बलवान होगा। यह बलराम
और कृष्ण भी परम प्रतापी निकलेंगे। द्वारिकापुरी में रहते हुए वे जरासन्ध का वध कर अर्ध भरत के स्वामी होंगे।"
यह सुनकर राजा समुद्रविजय को अत्यन्त आनन्द हुआ, और उसने मुनिराज का यथोचित आदर सत्कार कर उन्हें आनन्दपूर्वक विदा किया। इसके बाद प्रयाण करते हुए यादवों का यह दल सौराष्ट्र देश में पहुंचा और वहां गिरनार के उत्तर पश्चिम में उसने डेरा डाला। यहीं पर कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने भानु और भामर नामक परम रूपवान दो पुत्रों को जन्म दिया। इनका जन्म होने पर क्रोष्टुकी के आदेशानुसार कृष्ण ने स्नान और बलिकर्म कर अट्ठम तप किया और उसके साथ ही समुद्र की भी पूजा की।
___ इस पूजा से प्रसन्न हो, तीसरे दिन रात्रि के समय सुस्थित नामक लवण समुद्र का अधिष्टायक देवता उपस्थित हुआ। उसने कृष्ण को पांच जन्य शंख