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श्री नेमिनाथ-चरित * 241 सहदेव ने उनकी ओर कालकुमार का ध्यान भी आकर्षित किया, किन्तु उसने उसकी एक न सुनी। वह तेजी के साथ रास्ता काटते हुए सदलबल शीघ्र ही विन्धयाचल की तराई में यादवों के समीप जा पहुंचा। ___ कालकुमार को समीप आया जानकर बलराम और कृष्ण के अधिष्ठायक देवताओं को यादवों की रक्षा करने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसलिए उन्होंने अपनी माया से एक पर्वत खड़ा कर, उसमें दावानल और एक बड़ी सी चिता का दृश्य उपस्थित किया और उस चिता के पास एक रोती हई स्त्री को बैठा दिया। इस मायाविनी रमणी को देखते ही कालकुमार ने पूछा- “भद्रे! तुम कौन हो और इस प्रकार क्यों रुदन कर रही हो?" ___उस रमणी ने दोनों नेत्रों से अश्रुधार बहाते हुए कहा- "मैं बलराम और कृष्ण की बहिन हूँ। जरासन्ध के भय से समस्त यादव इस ओर को भाग आये थे। किन्तु उन्होंने जब सुना कि कालकुमार अपनी विशाल सेना के साथ समीप आ पहुंचा है, तब वे भयभीत होकर इस दावानल में घुस गये। मैं समझती हूँ कि वे सब उसी में जल.मरे होंगे। बलराम, कृष्ण तथा समुद्रविजय आदि दशार्ह भी इससे बड़ी चिन्ता में पड़ गये। उन्हें अपनी रक्षा का कोई उपाय न सूझ पड़ा। इसलिए अभी कुछ ही क्षण पहले उन्होंने भी इस चिता में प्रवेश किया है। हे भद्र! मैं उन्हीं के दु:ख से दुःखित हो रही हूं और इस चिता में प्रवेश कर अपना प्राण देने जा रही हूँ।" .... इतना कह, वह मायाविनी स्त्री उस चिता में कूद पड़ी। उसकी यह हरकत
देख, कालकुमार को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हो आया। उसने अपने पिता तथा बहिन के सामने यह प्रतिज्ञा की थी कि-"मैं यादवों को अग्नि या समुद्र से भी खींचकर मारूंगा, इसलिए उसने मन में कहा-“अब अग्निप्रवेश किये बिना काम नहीं चल सकता। किसी तरह हो, मैं अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पूर्ण
करूंगा।"
. इतना कह कालकुमार अपनी तलवार खींचकर उस चिता में घुस पड़ा। उसके समस्त संगी साथी भी देवताओं की माया से मोहित हो रहे थे, इसलिए उन्होंने भी उसे न रोका और वह उनके सामने ही उस चिता में जलकर भस्म हो गया। इतने ही में सूर्यास्त होकर रात हो गयी, इसलिए यवन सहदेव ने सेना