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240 * कंस-वध
उन्होंने क्रोष्टुकि नामक ज्योतिषी को बुलाकर पूछा-“हे भद्र! तीन खण्ड के स्वामी राजा जरासन्ध से हमारा विग्रह उपस्थित हो गया है। कृपया बतलाइए .. कि अब क्या होगा?" ___ज्योतिषी ने कहा—“कुछ ही दिनों के अन्दर यह महाबलवन्त राम और कृष्ण जरासन्ध को मारकर तीनों खण्ड के स्वामी होंगे। परन्तु आप लोगों का अब यहाँ रहना अच्छा नहीं। आप अपने समस्त बन्धु बान्धव और परिवार को लेकर समुद्र के किनारे पश्चिम दिशा को चले जाइए। यहां से प्रस्थान करते ही. आपके शत्रुओं का नाश होना आरम्भ हो जायगा। आप लोग तब तक अपनी यात्रा में बराबर आगे बढ़ते जायें, जब तक सत्यभामा दो पुत्रों को जन्म न दे। इसके बाद जहां वह दो पुत्रों को जन्म दे, वहीं आप लोग नगर बसाकर बस . जायें। ऐसा करने पर कोई भी आपका बाल बांका न कर सकेगा और उत्तरोत्तर : आपका कल्याण ही होता जायगा।"
यह सुनकर राजा समुद्रविजय बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने उसी दिन डुगी पिटवाकर अपने प्रयाण की घोषणा करवा दी। इसके बाद मथुरा नगरी से अपने ग्यारह कोटि बन्धु बान्धवों को साथ लेकर वे शौर्यपुर गये और वहां से सातकोटिं यादवों का दल विन्ध्याचल के मध्यभाग में होकर पश्चिम दिशा की
ओर आगे बढ़ा। राजा उग्रसेन ने भी मथुरा में रहना उचित न समझा, इसलिए वे भी उन्हीं के साथ चल दिये। .
उधर राजा सोम ने राजगृही में जाकर, समद्रविजय की सब बातें जरासन्ध को कह सुनायी। सुनते ही जरासन्ध क्रोध से आग बबूला हो उठा। उसे क्रूद्ध देखकर उसके पुत्र कालकुमार ने कहा-“हे तात! आपके सामने वे डरपोक यादव किस हिसाब में हैं ? यदि आप आज्ञा दें, तो मैं उन्हें समुद्र या अग्नि से भी खींचकर मार सकता हूँ। यदि मैं इस प्रतिज्ञा के अनुसार काम न करूंगा, तो अग्निप्रवेश कर अपना प्राण दे दूंगा और आपको भी अपना मुख न दिखाऊंगा।"
पुत्र के यह विरोचित वचन सुनकर जरासन्ध बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने उसी समय कालकुमार को पांचसौ राजा और अगणित सेना के साथ यादवों पर आक्रमण करने के लिए रवाना किया। कालकुमार के साथ उसका भाई यवन सहदेव भी था। इन लोगों को चलते समय तरह तरह के अपशकुन हुए। यवन