________________
238 : कंस वध
मथुरा का राजा बनाया। राजा उग्रसेन ने इसी समय अपनी पुत्री सत्यभामा के साथ कृष्ण का ब्याह भी कर दिया। थोड़े ही दिनो पहले जहां उत्पात और अशान्ति का वायुमण्डल था, वहीं अब शान्ति, सुख और आनन्द की छटा दिखायी देने लगी।
उधर मथुरा से प्रस्थान कर जीवयशा यथासमय अपने पिता जरासन्ध के पास पहुंची। उसके बिखरे हुए केश, रोषपूर्ण, लाल लाल नेत्र और मूर्तिमान दरिद्रता का सा भयंकर रूप देखकर वे विचाराधीन हो गये। पूछताछ करने पर जीवयशा ने अतिमुक्तक मुनि के आगमन से लेकर कंस की मृत्यु पर्यन्त का सारा हाल उन्हें कह सुनाया। सुनकर जरासन्ध से कहा- - "हे पुत्री ! कंस ने आरम्भ . भूल की थी । उसे देवकी को मार डालना चाहिए था । न रहता बांस न बजती बांसुरी । यदि खेत न रहता तो अनाज ही क्यों पैदा होता ? परन्तु हे पुत्री !! अब तूं रुदन मत कर। मैं कंस के घातकों को सपरिवार मारकर उनकी स्त्रियों को अवश्य रुलाऊंगा। यदि मैंने ऐसा न किया, तो मेरा नाम जरासन्ध नहीं । "
―――――――――
इस प्रकार पुत्री को सान्त्वना देने के बाद जरासन्ध ने सोम नामक एक राजा को दूत बनाकर राजा समुद्रविजय के पास मथुरा भेजा। उसने वहां जाकर उनसे कहा – “हे राजन् ! राजा जरासन्ध ने कहलाया है कि मेरी पुत्री जीवयशा मुझे प्राण से भी अधिक प्यारी है। उसके कारण उसका पति भी मुझे वैसा ही प्यारा था। आप और आपके सेवक सहर्ष रह सकते हैं, परन्तु कस को मारने वाले इन बलराम और कृष्ण नामक क्षुद्र बालकों को हमारे हाथों में सौंप दीजिए । देवकी का सातवां गर्भ तो कंस को देने के लिए आप लोग पहले ही से बाध्य थे। खैर तब न सही, अब उसे दे दीजिए। बलराम ने कृष्ण की रक्षा की है, इसलिए वह भी अपराधी है । "
समुद्रविजय ने उत्तर दिया- " जरासन्ध हमारे मालिक है, परन्तु उनकी अनुचित आज्ञा हम लोग कैसे पालन कर सकते हैं? वसुदेव ने अपनी सरलता के कारण देवकी के छः गर्भ कंस को सौंप दिये, सो उसने कोई अच्छा कार्य नहीं किया। बलराम और श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर अपने उन्हीं भाईयों का बदला लिया है, इसलिए वे अपराधी नहीं कहे जा सकते। यदि वसुदेव बाल्यावस्था से स्वेच्छचारी न होता और हमारी सम्मति से सब काम करता