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236 * कंस-वध
इतना कहकर कृष्ण उछलकर कंस के मञ्च पर चढ़ गये और उसके केश पकड़कर उसे भूमि पर गिरा दिया। भूमि पर गिरते ही कंस का मुकुट टूट कर चूर चूर हो गया और उसके कपड़े फट गये। उसकी अवस्था ठीक वैसी ही हो गयी, जैसी वध स्थान में बँधे हुए बकरे की होती है। कृष्ण ने उसकी भर्त्सना करते हुए कहा-“हे दुष्ट! तूने अपनी रक्षा के लिए व्यर्थ ही बाल हत्याएं की। देख, अब तेरा काल तेरे सामने खड़ा है। हे दुष्ट ! हे नीच! हे नराधम! अब तूं अपने कर्म का फल भोगने को तैयार हो जा!" . .... ____ इतना कहकर कृष्ण, कंस की ओर झपटे। इसी समय बलराम ने मुष्टिक मल्ल को मार डाला। कंस की ओर कृष्ण को अग्रसर होते देखकर कंस के अनेक सैनिक विविध शस्त्र लेकर उन्हें मारने दौड़े, किन्तु बलराम ने मञ्च के स्तम्भ उखाड़ कर उनको इस तरह मारा कि वे छत्ते पर बैठी हुई मधु मक्खियों की भांति भाग खड़े हुए। इसी समय कृष्ण ने कंस के शिर पर पैर रखकर उसे भूमि पर गिरा दिया, और मुष्टि प्रहार द्वारा उसकी इहलोक लीला समाप्त कर दी। उसके बाद उसके केश पकड़कर वे उसे मण्डप के बाहर घसीटकर ले गये। कंस की यह दुर्दशा देखकर जरासन्ध के सैनिक, जिन्हें, कंस ने अपनी रक्षा के लिए बुला रक्खा था, राम और कृष्ण से युद्ध करने के लिए तैयार हुए। यह देखकर राजा समुद्रविजय भी सामने आ खड़े हुए। जरासन्ध की सेना को युद्ध के लिए प्रस्तुत देखकर उन्होंने भी अपनी सेना को आगे बढ़ने की आज्ञा दी। इससे जरासन्ध के सैनिकों की हिम्मत टूट गयी और वे उसी क्षण वहां से भाग खड़े हुए।
इस प्रकार मैदान साफ हो जाने पर समुद्रविजय के आदेश से अनाधृष्टि, बलराम और कृष्ण को रथ में बैठाकर वसुदेव के वासस्थान में छोड़ आया। वहां पर समस्त यादवों की एक सभा एकत्र हुई, जिसमें वसुदेव ने बलराम और कृष्ण को अपनी गोद में बिठाकर, उनका दुलारकर, उनके बल विक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की। वसुदेव का यह कार्य देखकर उनके भाईयों ने भी आश्चर्य प्रकट किया और बलराम तथा कृष्ण का वास्तविक परिचय पूछा। इस पर वसुदेव ने अतिमुक्तक मुनि के आगमन से लेकर कृष्ण के जन्म आदिक का सारा हाल उन्हें कह सुनाया।