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श्री नेमिनाथ-चरित * 235 कृष्ण ने चाणूर के हृदय पर एक जबर्दस्त मुक्का जमाया। महामानी चाणूर इससे तिलमिला उठा और उसने भी कृष्ण के हृदय पर एक ऐसा मुक्का जमाया कि, कृष्ण को चक्करसा आ गया और वे अर्धमूर्छित अवस्था में भूमि पर गिर पड़े। ____ कंस बड़ा ही पापी और कपटी था। उसने इसी अवस्था में कृष्ण पर प्रहार करने का चाणूर को संकेत किया। चाणूर संकेत पाते ही कृष्ण की ओर लपका। लोगों को भय हुआ कि वह अब उन्हें कदापि जिन्दा न छोड़ेगा और शायद होता भी ऐसा ही, किन्तु बलराम का ध्यान इसी समय उसकी ओर आकर्षित हुआ और वे मुष्टिक को छोड़कर चाणूर पर टूट पड़े। उन्होंने चणूर के हृदय पर चज्र समान एक चूंसा जमाया, जिससे वह सात धनुष दूर जा गिरा। इसी बीच कृष्ण भी सावधान हो गये और उन्होंने ताल ठोंककर फिर चाणूर को युद्ध के लिये ललकारा। चाणूर उनकी ललकार सुनकर फिर उनसे आ भिड़ा। इस बार महापराक्रमी कृष्ण ने घुटने से उसके शरीर का मध्यभाग दबा, हाथ से उसका शिर झुकाकर उसके ऐसा मुक्का मारा कि उसके मुख से रक्त की धारा बह निकली, हाथ पैर ढीले पड़ गये और दोनों नेत्र निस्तेज हो गये। उसने कृष्ण को छोड़ दिया और दूसरे ही क्षण उसके प्राणपखेरू सदा के लिये इस संसार से विदा हो गये। .. कृष्ण की इस विजय से यद्यपि दर्शकों को असीम आनन्द हुआ, किन्तु कंस के भय से किसी को हर्षध्वनि तक करने का साहस न हुआ। कंस तो चाणूर की मृत्यु देखकर भय और क्रोध से कांप उठा। उसने कहा- "इन दोनों गोप बालकों को शीघ्र ही मार डालो और इन दोनों सर्यों को दूध पिलाकर बड़ा करने .वाले नन्द को भी मार डालो। उस पापी की समस्त सम्पत्ति लूट लो! जो उसे बचाने की चेष्टा करे या उसके पक्ष की कोई बात कहे, उसे भी उसी क्षण मार डालो।" ___ उसके यह वचन सुनकर कृष्ण को क्रोध आ गया। उनके दोनों नेत्र रक्त कमल की भांति लाल हो गये। उन्होंने गर्जना कर कहा-“हे पापिष्ट! चाणूर की मृत्यु हो जाने पर भी तेरा होश अभी ठिकाने नहीं आया ? हे दुष्ट! पहले तूं अपनी रक्षा कर ले, फिर नन्दादिक को मरवाने की फिक्र करना! अब मैं तुझे भी कदापि जिंदा न छोडूंगा।"