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234 * कंस-वध चाणूर का शरीर बहुत हष्ट पुष्ट है, नित्य की कसरत के कारण इसका शरीर कसा हुआ है, कंस ने इसे न जाने कितना माल खिला दिया है, इसलिए आप लोगों की चिन्ता स्वाभाविक है। मैं एक साधारण गोप बालक हूँ, गो दुग्ध के सिवा खाने पीने की और कोई चीज मुझे नसीब भी नहीं होती, फिर भी आप लोग जरा तमाशा देखिए। इसकी भी आज वही दशा होगी, जो सिंहशावक के सामने मदोन्मत हाथी की होती है।" __कृष्ण के यह वचन सुनकर कंस कांप उठा। किन्तु उसने अपने इस भाव को प्रकट न करके कहा-“यह बालक बहुत ही अभिमानी मालूम होता है, इसलिए मैं मुष्टिक नामक महामल्ल को भी इसी समय इससे युद्ध करने का ... आदेश देता हूं।"
___ कंस का यह कहना था कि मुष्टिक भी लंगोट कस कर अखाड़े में कूद पड़ा। पहले यदि अन्यान्य हो रहा था, तो अब महाअन्याय होने की तैयारी होने लगी। बलराम भला इसे कब बर्दाश्त कर सकते थे। मुष्टिक के साथ ही वे भी मञ्च पर से अखाड़े में कूद पड़े। कृष्ण ने चाणूर को और बलराम ने मुष्टिक को अपने साथ युद्ध करने को ललकारा। दोनों जोड़ बेजोड़ होने पर भी देखने लायक थे। समस्त सभा की आंखें उधर ही जाकर स्थिर हो गयी। कृष्ण और बलराम दोनों अपने प्रतिस्पर्धा से नागपाश की तरह उलझ गये और बेतरह भुजायुद्ध करने लगे। युद्ध क्या आरम्भ हुआ, मानो प्रलयं उपस्थित हो गया। जिस समय वे भूमिपर दृढ़ता पूर्वक अपने चरण स्थापित करते, उस समय मानो पृथ्वी हिल उठती और जिस समय ताल ठोंकते या विभिन्न अंगों पर हाथ की थपकी लगाते, उस समय मानो ब्रह्माण फटने लगता। जिस समय कृष्ण और बलराम उन महामलों को गेंद की तरह अनायास ऊपर उछाल देते, उस समय लोगों के आनन्द का वारापार न रहता और उनके मुख से हर्ष की किलकारियाँ निकल पड़ती। चाणूर और मूष्टिक भी उन वीर बालकों को उठा फेंकने की चेष्टा करते, किन्तु उन्हें इसमें लेशमात्र भी सफलता नहीं मिल रही थी।
दोनों ओर से इसी तरह के दांवपेंच बहुत देर तक चलते रहे। अन्त में जिस प्रकार गजराज अपने दन्तशूलों द्वारा पर्वत पर प्रहार करता है, उसी प्रकार