SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 233 कोई मल्ल न दिखायी दिया इसलिए उसने सभाजनों को चुनौती देते हुए कहा-“जो वीर कुल में उत्पन्न हुआ हो या जो अपने को वीर मानता हो, उसे मैं युद्ध के लिए निमन्त्रित करता हूँ। वह अखाड़े में कूदकर मेरे साथ अपना बल आजमाये और मेरी युद्ध पिपासा को पूर्ण करे!" । ___ चाणूर की यह ललकार सुनकर सब लोग चुप हो गये। सभा में घोर सन्नाटा छा गया। किसी में भी ऐसी शक्ति न थी, जो उसकी चुनौती स्वीकार करे परन्तु महाभुज कृष्ण के लिए चाणूर का यह गर्वपूर्ण वचन असह्य हो पड़ा। वे अपना पीताम्बर दूर फेंककर अखाड़े में कूद पड़े और ताल ठोंककर चाणूर के सामने खड़े हो गये। उनका यह कार्य देखकर सब लोग बड़े आश्चर्य में पड़ गये। वे कहने लगे-“कहां चाणूर और कहां कृष्ण। चाणूर अवस्था और डील डौल में बहुत बड़ा है। उसका शरीर भी कर्कश हैं। मल्ल युद्ध उसका व्यवसाय है, उसी पर उसकी जीविता निर्भर करती है, इसलिए उसकी प्रकृति में क्रूरता आ गयी है किन्तु यह नन्दकुमार तो अभी दुधमुँहा बच्चा है। इसका शरीर कमल गर्भ से भी अधिक कोमल है। इसलिए चाणूर और इसका जोड़ बहुत ही अनुचित है। इनकी कुश्ती इनका युद्ध देखना भी सभ्य समाज के लिए पाप रूप है!" . . . इस प्रकार की चर्चा के कारण चारों ओर भयंकर कोलाहल मच गया। कंस भला इसे कैसे पसन्द कर सकता था? कृष्ण को किसी न किसी तरह मरवा डालना, यह तो उसका अभीष्ट ही था। उसने क्रूद्ध होकर कहा- "इन उन्मत्त गोप बालकों को यहां किसने बुलाया है ? मालूम होता है कि यह अपने आप ही यहां आये हैं और स्वेच्छा से ही मल्लयुद्ध करने को तैयार हुए है। ऐसी अवस्था में इन्हें रोकना ठीक नहीं। हां, यदि किसी को यह बुरा मालूम होता हो तो वह सामने आकर इन्हें सहर्ष रोक सकता है।" - कंस के यह क्रूरतापूर्ण वचन सुनकर सब लोग चुप हो गये, किसी को भी उसके सामने यह साहस न हुआ कि, इस अन्यायपूर्ण कार्य का विरोध करे, क्योंकि सभी लोग यह जानते थे कि कंस के कार्य का विरोध करना, मृत्यु को निमन्त्रण देना है। अन्त में इस श्मशान की सी शान्ति को भंग करते हुए कृष्ण ने गम्भीर स्वर में सभाजनों से कहा—“आप लोग चिन्ता न करें!
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy