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श्री नेमिनाथ-चरित * 231 भी हमारी माता ही है, परन्तु हमारे प्रकृत माता पिता तो ओर ही हैं।" ___ कृष्ण यह सुनकर चकित हो गये। बलराम ने धीरे से कहा-“यशोदा हमारी प्रकृत माता और नन्द हमारे प्रकृत पिता नहीं है। तुम्हारी प्रकृत माता का नाम देवकी है, जो देवक राजा की पुत्री है। हमारे पिता संसार में वीर शिरोमणि और परम सुन्दर माने जाते हैं। उनका नाम वसुदेव है। माता देवकी गो पूजन के बहाने प्रतिमास एक बार यहां आती हैं और तुम्हें देख जाती है। जिस समय वे यहां आती है, उस समय उनके स्तनसे झरने वाले दुग्ध और अश्रुओं से जमीन तक भीग जाती है। हमारे पिता वसुदेव कंस के आग्रह से इस समय मथुरा में ही रहते हैं, क्योंकि दाक्षिण्यता के भण्डार हैं। मैं तुम्हारा सौतेला भाई हूं, किन्तु उम्र में तुमसे बड़ा हूँ। इसीलिए पिताजी ने तुम्हारे साथ रहने का आदेश दिया है।"
कष्ण का आश्चर्य और भी बढ़ गया। उन्होंने विकसित नेत्रों से पछा"पिताजी ने मुझे अपने पास न रखकर यहां क्यों भेज दिया है ?" इस प्रश्न के उत्तर में बलराम ने कृष्ण को अपने भाईयों के मारे जाने का सारा हाल कह सुनाया। कृष्ण ज्यों ज्यों वह हाल सुनते जाते थे, त्यों त्यों क्रोध और घृणा के • कारण उनके शरीर में कम्पन्न उत्पन्न होता जाता था। बलराम की बातें जिस समय पूर्ण हुई, उस समय कृष्ण की अवस्था कुचले हुए सर्प की सी हो रही थी। उन्होंने हाथ में यमुना का जल लेकर उसी समय कंस को मारने की प्रतिज्ञा की। - इसके बाद दोनों भाई यमुना के जल में उतरकर प्रसन्नता पूर्वक स्नान करने लगे। उसी स्थान पर कालियनाग भयंकर सर्प रहता था। वह कृष्ण को देखते ही उनकी ओर झपट पड़ा। बलराम सावधान थे, इसलिए कालियनाग के फन पर मणि की चमक देखकर वे चोंक पड़े। उन्होंने चिल्लाकर कृष्ण का ध्यान उसकी और आकर्षित करना चाहा, परन्तु कृष्ण इसके पहले ही उसे देख चुके थे। इसलिए उन्होंने उसी समय कमल की भांति एक हाथ से उसे पकड़ लिया और कमलनाल द्वारा दूसरे हाथ से उसे नाथ डाला। इसके बाद उसकी पीठ पर बैठकर उन्होंने बड़ी देर तक उसे जल में घुमाया। अन्त में कालियनाग जब थककर परेशान हो गया, तब कृष्ण ने उसे छोड़ दिया। इसके बाद वे भी स्नान कर जल से बाहर निकल आये।