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________________ श्री नेमिनाथ - चरित : 229 यह कहने में लज्जा मालूम हुई कि मैं धनुष को न उठा सका, इसलिए उसने अपने पिता से कहा-' - " हे पिताजी ! अन्यान्य राजा जिसे छू भी न सके थे, उस शारंग धनुष को मैंने अनायास चढ़ा दिया है। " पुत्र के यह वचन सुनकर वसुदेव ने घबड़ा कर कहा – “यदि यह बात ठीक है, तो है अनाधृष्टि ! तुम इसी समय मथुरा से चले जाओ। यहां तुम्हारी खैर नहीं है। ज्योंही कंस को यह हाल मालूम होगा त्योंही यह तुम्हें मरवा डालेगा ।" पिता की यह बात सुनकर अनाधृष्टि ने कृष्ण के साथ उसी समय मथुरा नगरी छोड़ दी। वह वहां से गोकुल में आया और राम तथा कृष्ण से बिदा ग्रहण कर चुपचाप शौर्यपुर चला गया। अनाधृष्टि ने यद्यपि अपने पिता से कहा था, कि धनुष मैंने चढ़ाया है, तथापि सत्य बात अधिक समय तक छिपी न रह सकी। चारों ओर यह बात जाहिर हो गयी कि नन्द कुमार ने धनुष चढ़ाया है। यह समाचार सुनते ही कंस आग बबूला हो गया। उसने समारम्भ को रोककर समस्त मल्लों को मल्लयुद्ध का आयोजन करने की आज्ञा दी। जो राजा शारंग के उत्सव में भाग लेने आये थे, वे भी यह मल्लयुद्ध देखने कों ठहर गये। इस मल्लयुद्ध के अन्दर कंस की क्या दुरभिसन्धि छिपी है, यह वसुदेव को भली भांति मालूम थी । वे जानते थे कि इसके बहाने उनके प्रिय पुत्र का प्राण लेने की चेष्टा की जायगी। संभव है कि इस समय कोई और भी अनर्थ हो जाय, वह सोचकर उन्होंने इस अवसर पर • अपने समस्त ज्येष्ठ और अक्रूर आदि पुत्रों को मथुरा बुला लिया । कंस जिसे ..मारने की तैयारी कर रहा था, वसुदेव भीतर ही भीतर उसे बचाने की तैयारी करने लगे। धीरे-धीरे मल्लयुद्ध का दिन भी आ पहुंचा। अखाड़े के चारों ओर दर्शकों के बड़े बड़े सुशोभित मंच तैयार कराये गये थे । कंस ने अपने लिये भी एक ऊंचा मंच बनवाया था। नियत समय पर वसुदेव और उनके पुत्रादिक अन्यान्य राजाओं के साथ यथोचित स्थान में बैठाये गये और सब लोग बड़ी उत्सुकता के साथ मल्लों के आगमन की प्रतिक्षा करने लगे । उधर गोकुल में राम और कृष्ण ने भी इस उत्सव का समाचार सुना ।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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