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श्री नेमिनाथ-चरित * 227 उसकी प्रत्यञ्चा चढ़ा देगा, उसी के साथ मैं अपनी बहिन सत्यभामा का विवाह कर दूंगा।
सत्यभामा परम सुन्दरी रमणी थी। देखने में देवाङ्गनाओं को भी मात करती थी। उसके विवाह की बात सुनते ही चारों ओर से दूर-दूर के राजा महाराजा वहां आ आकर अपना भाग्य अजमाने लगे परन्तु उस धनुष की प्रत्यञ्चा चढ़ाना तो दूर रहा, कोई उसको उसके स्थान में तिल भर भी इधर उधर न कर सका। जो लोग आते थे, वे इसी तरह विफल हो होकर लौट जाते थे। मानो उस धनुष का चढ़ाने वला इस धरा धाम में उत्पन्न ही न हुआ था। ____धीरे धीरे यह समाचार अनाधृष्टि के कानों तक जा पहुंचा। अनाधृष्टि वसुदेव का पुत्र था और मदनवेगा के उदर से उत्पन्न हुआ था। वह अपने को बड़ा ही बलवान मानता था और इसके लिए उसे अभिमान भी था। उसने धनुष चढ़ाने का विचार किया और एक तेज रथ पर बैठा कर शीघ्र ही मथुरा के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में उसे गोकुल गांव मिला। वह राम और कृष्ण से मिलने के लिए वहां एक रात ठहर गया। उनसे बहुत दिनों के बाद मुलाकात होने के कारण वह अत्यन्त आनन्दित हुआ। .. दूसरे दिन सुबह अनाधृष्टि वहां से मथुरा जाने को निकला। राम और
कृष्ण प्रेमपूर्वक उसे नगर के बाहर पहुँचाने आये। अनाधृष्टि को मथुरा का . रास्ता मालूम न था, इसलिए उसने राम को तो बिदा कर दिया, किन्तु कृष्ण . को रास्ता दिखाने के लिए अपने साथ ले लिया। ____ मथुरा का मार्ग बहुत ही संकीर्ण था और उसमें जहां तहां बड़े बड़े वृक्ष खड़े थे। गोकुल से कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर अनाधृष्टि का रथ एक विशाल वट वृक्ष में फँस गया। अनाधृष्टि ने उसे बाहर निकालने की बड़ी चेष्टा की, बहुत हाथ पैर मारे, किन्तु किसी तरह भी वह रथ बाहर न निकल सका। यह
देखकर कृष्ण रथ पर से नीचे कूद पड़े और उन्होंने क्षणमात्र में उस वृक्ष को • उखाड़कर रथ का रास्ता साफ कर दिया। कृष्ण का यह बल देखकर अनाधृष्टि
को बड़ा ही आनन्द हुआ और उसने प्रेमपूर्वक कृष्ण को गले से लगा लिया। इसके बाद वे दोनों रथ पर बैठकर पुन: आगे बढ़े और क्रमश: यमुना नदी पारकर निर्विघ्न रूप से मथुरा जा पहुंचे।