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226 * कंस-वध पूर्वक अपने सींग और पूछ उठाकर वह कृष्ण की ओर झपटा। कृष्ण भी तैयार खड़े थे। नजदीक आते ही उन्होंने उसके दोनों सींग पकड़ कर उसकी गर्दन इस - तरह ऐंठ दी, कि वह वहीं जमीन पर गिर पड़ा और उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी। अरिष्ट की इस मृत्यु से गोप गोपियों को बड़ा ही आनन्द हुआ
और वे देवता की भांति कृष्ण की पूजा करने लगे। कृष्ण पर अब तक उनका जो प्रेम था, वह इस घटना के बाद दूना हो गया।
इसके बाद एक दिन कृष्ण अपने इष्ट मित्रों के साथ वन में क्रीड़ा कर रहे थे। इसी समय कंस का वह केशी नामक अश्व वहां आ पहुंचा। उसके बड़े बड़े दांत, काल समान शरीर और भयंकर मुख देखकर सब लोग भयभीत हो गये। वह छोटे छोटे बछड़ों को मुख से काटने और गाय बैलों को लातों से मारने लगा। कृष्ण ने उसे कई बार खदेड़ा, परन्तु वह किसी प्रकार भी वहां से न गया। अन्त में जब कृष्ण ने बहुत तर्जना की, तब वह मुख फैलाकर उन्हीं को काटने के लिए झपट पड़ा। उसके तीक्ष्ण दांतों को देखकर सबको शंका हुई, कि अब वह कृष्ण को कदापि जिन्दा न छोड़ेगा, परन्तु उसके समीप आते ही कृष्ण ने अपनी वज्र समान भुजा इतनी तेजी के साथ उसके मुख में डाल दी कि उसका मुख गर्दन तक फट गया और उसी पीड़ा के कारण तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार कंस के उस दुर्दान्त गर्दभ और मेष को भी कृष्ण ने क्षणमात्र में मारकर गोकुल और वृन्दावन को सदा के लिए उनके भय से मुक्त कर दिया।
इन सब बातों का पता लगाने के लिए कंस के गुप्तचर सदैव चारों ओर विचरण किया करते थे। उन्होंने यथासमय कंस को इन सब घटनाओं की सूचना दी। इससे कंस का सन्देह दूर हो गया और यह समझ गया कि नन्द के यहां कृष्ण नामक जो बालक है, वही मेरा शत्रु है फिर भी विशेष रूप से इसकी परीक्षा करने के लिए उसने एक उत्सव का आयोजन किया। यह पहले ही बतलाया जा चुका है कि उसके यहां शारंग नामक एक धनुष था, जिसकी सत्यभाषा पूजा किया करती थी। उसने उस धनुष को राजसभा में स्थापित कराया और सत्यभामा को वहाँ बैठकर उसकी पूजा करने का आदेश दिया। इसके बाद उसने चारों ओर घोषणा कर दी कि जो शारंग धनुष को उठाकर