________________
श्री नेमिनाथ-चरित * 225 कालीयनाग का दमन करेगा और चाणूर मल्ल तथा आपके पद्मोत्तर तथा चम्पक नामक हाथियों को मारेगा। जो यह सब कार्य करेगा, उसी के द्वारा आपकी भी मृत्यु होगी।"
ज्योतिषी के यह वचन सुनकर कंस का हृदय भय से कांप उठा। उसने अपने शत्रु को खोज निकालने के लिए उसी समय अरिष्ट आदि को वृन्दावन में छोड़ दिया। अरिष्ट वास्तव में बड़ा ही भीषण पशु था, वह जहां जाता, वहां के लोगों को अत्यन्त दुःखित कर देता। मनुष्यों की कौन कहे, बड़े बड़े गाय बैलों को भी वह अपने सींगों से पंक की भांति उठाकर दूर फेंक देता था। यदि किसी के घर में वह घुस जाता, तो वहां से किसी प्रकार भी निकाले न निकलता और दही दूध या घृतादिक के जो पात्र सामने पड़ते, उन्हें तोड़ फोड़ कर मिट्टी में मिला देता। ___एकदिन अरिष्ट घूमता घामता गोकुल में जा पहुंचा और वहां पर गोप गोपियों के घर में घुसकर इसी तरह के उत्पात मचाने लगा। उसने किसी के बच्चों को उठा पटका, किसी के गाय बैलों को जख्मी कर डाला, किसी का
घी दूध मिट्टी में मिला दिया और किसी की खाद्य सामग्री नष्ट भ्रष्ट कर दी। '. उसके इन उत्पातों से चारों ओरं हाहाकार मच गया। गोपियां दीन बन गयी। वे . दुःखित होकर राम और कृष्ण को पुकारकर कहने लगी-“हे राम! हे कृष्ण! • हमें बचाओ। इस आफत से हमारी रक्षा करो!" . गोपियों की यह करुण पुकार शीघ्र ही राम और कृष्ण के कानों में जा
पड़ी। वे उसी समय उनकी रक्षा के लिए दौड़ पड़े। परन्तु बुढ़े मनुष्यों ने उनको रोका। वे जानते थे कि अरिष्ट कंस का सांढ़ है। वह बड़ा ही भयंकर है, एक तो उसे मारना ही कठिन है और यदि कोई किसी तरह उसे मारेगा भी, तो वह कंस का कोप भाजन हुए बिना न रहेगा। इसलिए उन्होंने राम और कृष्ण से कहा-"जो कुछ होता हो, होने दो! वहां जाने की जरूरत नहीं। हमें घी दूध न चाहिए, गाय बैल न चाहिए, उनकी सब हानि हम बर्दाश्त कर लेंगे, परन्तु हम तुम्हें वहां न जाने देंगे। वहां जाने से तुम्हारी खैर नहीं!" . ___ परन्तु राम और कृष्ण ऐसी बातें सुनकर भला क्यों रुकते ? वे शीघ्र ही सांढ के पास जा पहुंचे। कृष्ण ने उसे ललकारा। उनकी ललकार सुनते ही रोष