________________
श्री नेमिनाथ-चरित * 223 जीवों के पालन करने वाले हैं। हे प्रभो! आज भरत क्षेत्र अपराजित विमान से भी अधिक महिमावंत बन गया है, क्योंकि लोगों को सम्यक्त्व देने वाले आपने इसमें जन्म लिया है। हे नाथ! अब आप से मेरी यही प्रार्थना है कि आपके चरण मेरे मन रूपी मान सरोवर में राज हंस की भांति सदा निवास करें और मेरी जिह्वा निरन्तर आपका गुणगान किया करें!" ___ इस प्रकार जगत् प्रभु की स्तुति कर शक्रेन्द पुन: उन्हें शिवावेदी के पास उठा ले गये और उन्हें यथास्थान रख आये। इसके बाद भगवान के लिए पांच अप्सराओं को धात्रि के स्थान में नियुक्त कर, वे नन्दीश्वर की यात्रा कर अपने स्थान को वापस चले गये।
इसके बाद राजा समुद्रविजय ने भी पुत्र के जन्मोपलक्ष में एक महोत्सव मनाया और अपने इष्टमित्र, सभाजन तथा आश्रितों को दानादि द्वारा सम्मानित किया। जिस समय यह बालक गर्भ में आया, उस समय उसकी माता ने पहले चौदह स्वप्न और बाद में अरिष्टरत्न की चक्रधारा देखी थी, इसलिए राजा ने उस बालक का नाम अरिष्टनेमि रक्खा। अरिष्टनेमि के जन्म का समाचार सुनकर वसुदेव आदि राजाओं को भी अत्यन्त आनन्द हआ और उन्होंने भी मथुरा नगरी में बड़ी धूम के साथ उसका जन्मोत्सव मनाया।